यार सोचता हूं,कलम प्यार लिखती है. कहीं मैं मोहब्बत में तो नहीं ! 00000
वह गांव से शहर आया था, कुछ छोटा-मोटा काम खोजता हुआ. शुरू-शुरू में ख़र्चा बांट कर किसी के साथ रहने लगा. उधर, किसी पक्की नौकरी की कोशिश भी करता रहा. एक दिन, एक बड़े कारखाने में बात बन ही गर्इ, नौकरी पक्की तो नहीं थी पर यह पता चला कि...
उसकी शादी हुए कुछ समय हो गया था. पर गोद अभी नहीं भरी थी. यूं तो इस बात पर किसी का कोर्इ ख़ास ध्यान नहीं था पर उसकी सास को इस बात का मलाल था और, गाहे-बगाहे इस बारे में कुछ टेढ़ा सा सुना ही देती थी. उनके घरों में, इन मामलों में डॉक्टरों की सलाह लेना ज़रा सही नहीं मा...
वह भार्इ-बहनों में सबसे बड़ी थी. बचपन में ही एक आदिवासी गांव से शहर आ गर्इ थी. अपने बचपन में, दूसरे परिवारों के बच्चे संभालने का काम किया. बड़ी हो गर्इ तो घरों में नौकरानी का काम किया. लोग उसे मेड कहते थे. हर महीने गांव मनिऑर्डर भेजती. गांव जाना तभी होता था...
उस महानगर के बीचो-बीच एक बहुत बड़े चाैराहे के चारों तरफ वहां का बाज़ार बसा था. बाज़ार बस बाज़ार ही नहीं था, उसमें तमाम तरह के दफ़्तर भी थे. उस चौराहे पर पता नहीं कौन लोग सुबह मुंह-अंधेरे कुछ दाना डाल जाते, आैर कबूतर सारा दिन उसे चुगते रहते. चौराहे पर ट्रैफ़िक का बह...
जब जब गांव आती है खुदाई की मशीन,डर जाता है खेतसहमता है चूल्हा हंसता है ताला.पगडंडी-से पैण्डुलम के दूसरे सिरे पर बंधा शहर ठठाता हैबुलाता है.बस कुछ दिन और...मुटा जाता है शहरडर जाता है खेत मर जाता है खेत.00000
उसकी उम्र तीन-चार साल थी. बाजार के कोने में एक दुकान बन रही थी जहां उसके मां-वाप ईंटें ढोने का काम कर रहे थे. वह वहीं अपने मां-बाप के आस-पास खेलता रहता. पास की दुकानों पर लोग आते-जाते, वह उन्हें देखता रहता. आने-जाने वालों के साथ बच्चे भी होते वह उन बच्चों को भी...
लाला बहुत परेशान था. उसने जगह-जगह फ़ोन करने के बाद फ़ैसला किया कि थाने जाना ही ठीक रहेगा. थानेदार को मिला और अपनी आपबीती सुनाई कि -‘साहब, मेरा सेल्समैन रामू मेरा तेइस लाख रूपया लेकर भाग गया. दो नंबर का पैसा नहीं था साहब, तीन दिन की बिक्री का पैसा था. बैंक क...
गांव में दोनों के घर साथ-साथ थे. पर दुश्मनी पुश्तैनी थी, किसी को याद नहीं था कि दुश्मनी किस बात पर और कब से चली आ रही थी. दोनों घरों में आने वाली नई बहुएं भी बिना कहे ही शीतयुद्ध की पैठ समझ जातीं और समय के साथ-साथ वे भी अपने-अपने दायरे बना लेती.एक दिन, उन्...
वह कड़े जीवट वाला सीधा सा इन्सान था. नौकरी की खोज में गांव से शहर आया था. पढ़ने का शौक उसे पत्रकारिता में ले गया. ईमानदारी से नौकरी की और उतनी तरक्की भी पायी जितनी एक ईमानदार को मिलती है, इसलिए पूरी ज़िंदगी तंगी में गुजारी. पर उसे कभी किसी से कोई शिकायत नह...