ब्लॉगसेतु

सॉनेटधीर धरकर•पीर सहिए, धीर धरिए।आह को भी वाह कहिए।बात मन में छिपा रहिए।।हवा के सँग मौन बहिए।।मधुर सुधियों सँग महकिए।स्नेहियों को चुप सुमिरिए।कहाँ क्या शुभ लेख तहिए।।दर्द हो बेदर्द सहिए।।श्वास इंजिन, आस पहिए।देह वाहन ठीक रखिए।बनें दिनकर, नहीं रुकिए।।असत् के आगे न झ...
 मुक्तिका सुभद्रा *वीरों का कैसा हो बसंत तुमने हमको बतलाया था। बुंदेली मर्दानी का यश दस दिश में गुंजाया था।। 'बिखरे मोती', 'सीधे सादे चित्र', 'मुकुल' हैं कालजयी। 'उन्मादिनी', 'त्रिधारा' से सम्मान अपरिमित पाया था।। रामनाथ सिंह सुता, लक्ष्मण सिंह भार्या तेजस्व...
 पोस्ट लेवल : मुक्तिका सुभद्रा
सॉनेटशारद वंदना•शारदे! दे सुमति कर्म कर।हम जलें जन्म भर दीप बन।जी सकें जिंदगी धर्म कर।।हो सुखी लोक, कर कुछ जतन।।हार ले माँ! सुमन अरु सुमन।हार दे माँ! क्षणिक, जय सदा।हो सकल सृष्टि हमको स्वजन।।बेहतर कर सकें जो बदा।।तार दे जो न टूटें कभी।श्वास वीणा बजे अनहदी।प्यार दे,...
सॉनेट वसुधा•वसुधा धीरजवान गगन सी।सखी पीर को गले लगाती।चुप सह लेती, फिर मुसकाती।।रही गुनगुना आप मगन सी।।करें कनुप्रिया का हरि वंदन।साथ रहें गोवर्धन पूजें।दूर रहें सुधियों में डूबें।।विरह व्यथा हो शीतल चंदन।सुख मेहमां, दुख रहवासी हम।विपिन विहारी, वनवासी हम।भोग-योगकर...
 पोस्ट लेवल : शारदा सानेट
सॉनेटसदा सुहागिन•खिलती-हँसती सदा सुहागिन।प्रिय-बाहों में रहे चहकती।वर्षा-गर्मी हँसकर सहती।।करे मकां-घर सदा सुहागिन।।गमला; क्यारी या वन-उपवन।जड़ें जमा ले, नहीं भटकती।बाधाओं से नहीं अटकती।।कहीं न होती किंचित उन्मन।।दूर व्याधियाँ अगिन भगाती।अपनों को संबल दे-पाती।जीवट क...
सॉनेटदयानन्द•शारद माँ के तप: पूत हे!करी दया आनंद  लुटाया।वेद-ज्ञान-पर्याय दूत हे!मिटा असत्य, सत्य बतलाया।।अंध-भक्ति का खंडन-मंडन। पार्थिव-पूजन को ठुकराया। सत्य-शक्ति का ले अवलंबन।। आडंबर को धूल मिलाया।। राजशक्ति से निर्भय जूझे। लोकशक्त...
सॉनेट रस*रस गागर रीते फिर फिर भर।तरस न बरस सरस होकर मन।नीरस मत हो, हरष हुलस कर।।कलकल कर निर्झर सम हर जन।।दरस परस कर, उमग-उमगकर।रूपराशि लख, मादक चितवन।रसनिधि अक्षर नटवर-पथ पर।।हो रस लीन श्वास कर मधुबन।।जग रसखान मान, अँजुरी भर।नेह नर्मदा जल पी आत्मन!कर रस पान, प...
सॉनेटरस*रस गागर रीते फिर फिर भर।तरस न बरस सरस होकर मन।नीरस मत हो, हरष हुलस कर।।कलकल कर निर्झर सम हर जन।।दरस परस कर, उमग-उमगकर।रूपराशि लख, मादक चितवन।रसनिधि अक्षर नटवर-पथ पर।।हो रस लीन श्वास कर मधुबन।।जग रसखान मान, अँजुरी भर।नेह नर्मदा जल पी आत्मन!कर रस पान, पुलक जय...
दोहा मुकतक बीत गईँ कितनी ऋतुएँ, बीते कितने सालकोयल तजे न कूकना, हिरन न बदले चालपर्व बसंती हो गया, वैलेंटाइन आजप्रेम फूल सा झट झरे, सात जन्म कंगाल*निशि दिन छटा बसंत की, देखें तन्मय मौन। आभा अंजलि में लिए, सजा रहा जग कौन।।सॉनेट   बसंत*पत्ता पत्ता...
सॉनेटक्यों?*अघटित क्यों नित घटता हे प्रभु?कैसे हो तुम पर विश्वास?सज्जन क्यों पाते हैं त्रास?अनाचार क्यों बढ़ता हे विभु?कालजयी क्यों असत्-तिमिर है? क्यों क्षणभंगुर सत्य प्रकाश?क्यों बाँधे मोहों के पाश?क्यों स्वार्थों हित श्वास-समर है?क्यों माया की छाया भाती?क्यों का...