नवगीत:काबलियत को भूलचुना बेटे को मैंनेबाम्हन का बेटा बाम्हन हैबनिया का बेटा है बनियासंत सेठ नेता भी चुनताअपना बेटा माने दुनियादेखा सपना झूमउठा बेटे को मैंनेमरकर पगड़ी बाँधी सुत-सिरतुमने, पर मैंने जीते जीबिना बात ही बात उछालीतुमने खूब तवज्जो क्यों...
नवगीत:जो जी चाहे करूँमुझे तो है इसका अधिकारबीड़ी-गुटखा बहुत जरूरीसाग न खा सकता मजबूरीपौआ पी सकता हूँ, लेकिनदूध नहीं स्वीकारजो जी चाहे करूँमुझे तो है इसका अधिकारकौन पकाये घर में खानापिज़्ज़ा-चाट-पकौड़े खानाचटक-मटक बाजार चलूँपढ़ी-लिखी मैं नार जो जी चाहे करूँमुझे...
नवगीत:बग्घी बैठासठियाया है समाजवादीहिन्दू-मुस्लिम को लड़वाएअस्मत की धज्जियाँ उड़ाएआँसू सिसकी चीखें नारेआश्वासन कथरी लाशों परसत्ता पाकरउढ़ा रहा है समाजवादीखुद बीबी साले बेटी कोसत्ता दे, चाहे हेटी होघपलों-घोटालों की जय-जयकथनी-करनी में अंतर करन्यायालय सेसजा पा रहा समाजवा...
नवगीत:अंध श्रद्धा शाप हैआदमी को देवता मत मानियेआँख पर अपनी न पट्टी बाँधिएसाफ़ मन-दर्पण हमेशा यदि न होगैर को निज मसीहा मत मानिएलक्ष्य अपना आप हैकौन गुरुघंटाल हो किसको पता?बुद्धि को तजकर नहीं करिए खतागुरु बनायें तो परखिए भी उसेबता पाये गुरु नहीं तुझको धताबुद्धि तजना प...
नवगीत:वेश संत कामन शैतानछोड़ न पाये भोग-वासनामोह रहे हैं काम-कामनाशांत नहीं है क्रोध-अग्नि भीशेष अभी भी द्वेष-चाहनाखुद को बतारहे भगवानशेष न मन में रही विमलताभूल चुके हैं नेह-तरलताकर्मकांड ने भर दी जड़ताबन बैठे हैंये हैवानजोड़ रखी धन-संपद भारीसीख-सिखाते हैं अ...
कहावतें, मुहावरे, लोकोक्तियाँआँख से सम्बंधित कहावतें, मुहावरे, लोकोक्तियाँ अर्थ और प्रयोग सहित प्रस्तुत करें। जैसे आँख लगना = नींद आ जाना। जैसे ही आँख लगी दरवाजे की सांकल बज गयी. http://divyanarmada.blogspot.in/
नवगीत:ब्रजेश श्रीवास्तव(नवगीत महोत्सव लखनऊ में वरिष्ठ नवगीतकार श्री ब्रजेश श्रीवास्तव, ग्वालियर से उनका नवगीत संग्रह 'बाँसों के झुरमुट से' प्राप्त हुआ. प्रस्तुत है उनका एक नवगीत) *देखते ही देखते बिटियासयानी हो गई उच्च शिक्षा प्राप्त कर वहनौकरी क...
नवगीत: अच्छा लगेगा आपको यह जानकर अच्छा लगेगा*सुबह सूरज क्षितिज पर अलसा रहा था उषा-वसुधा-रश्मि को भरमा रहा था मिलीं तीनों,भाग नभ परजां बचाई, कान पकड़ेअब न संध्या को ठगेगा*दोपहर से दिन ढलेकी जी हजूरीसमय से फिर भीनहीं पाई मजूरीआह भरता नदी...
नवगीत:भाग-दौड़ आपा-धापी है नहीं किसी को फिक्र किसी कीनिष्ठा रही न ख़ास इसी कीप्लेटफॉर्म जैसा समाज हैकब्जेधारी को सुराज हैअति-जाती अवसर ट्रेनजगह दिलाये धन या ब्रेनबेचैनी सबमें व्यापी हैइंजिन-कोच ग्रहों से घूमेंनहीं जमाते जड़ें जमीं मेंयायावर-पथभ्रष्ट नहीं हैंपाते-...
नवगीत:अच्छा लगेगा आपको यह जानकर अच्छा लगेगा*सुबह सूरज क्षितिज परअलसा रहा थाउषा-वसुधा-रश्मि कोभरमा रहा थामिलीं तीनों,भाग नभ परजां बचाई, कान पकड़ेअब न संध्या को ठगेगा*दोपहर से दिन ढलेकी जी हजूरीसमय से फिर भीनहीं पाई मजूरीआह भरता नदी सेमिल गले रोयालहर का...