Memories ने बताया कि कुछ मेमोरीज ताजिंदगी अंदर सहेजी रहती है या रहनी चाहिए।
मुझे स्वयं से अत्यधिक नाराजगी की एक वजह ये दिखती है कि यश-ऋषभ पर उनके बचपन में मैंने उनपर हाथ चलाये। शायद इसका कारण मेरे अंदर तथाकथित गुस्से वाले पापा का बैठा होना था, साथ ही अत्यधिक उम्मीदों की गठरी भी, इनके सर पर रखना भी था । पर समय के बदलते रुख के साथ व फेसबुक प...
Add captionएक हम सबकी यानी हमारे एजग्रुप या उससे कुछ पहले की जस्ट कॉलेज वाली जिंदगी हुआ करती थी, उस समय ग्यारहवीं यानी आईएससी भी कॉलेज था। तब पापा मने डांट या पिटाई ही कहलाया करता था। पापा तो रावण होते थे ☺️ (उस समय के सोच के हिसाब से)! बैठे बैठे चिल्लाते थे, या फ...
जिंदगी कितनी कमीनी है, कितनी डरी हुई है और कितना परेशान करती है। देर रात, गले में पता नहीं क्या अटका, एक हल्का सा दर्द पूरे शरीर को सिहराने के लिए काफी था। फिर तो सारा दिमाग अगले क्षण से लेकर अगले बरसो तक का खाका खींचते चला गया, जिसमें हम नहीं थे व दुनिया बेनूर हो...
"लाल फ्राक वाली लड़की" ( पुस्तक)लेखक- मुकेश कुमार सिन्हाहां ! यही नाम है प्रेम के हर उस एहसास का जिसे कहीं न कहीं अपने उम्र के दौर में कुछ पल के लिए ही सही पर जीते हम सभी हैंजी हाँ ! कुछ ऐसी ही है लाल "फ्राक वाली लड़की" नादान मन की भोली ख्वाइश कच्चे पक्के जज्बातों की...
चाय के मीठे घूंट की शुरुआत मैया के पल्लू को दांतों में दबाये, उसके होंठों से लगे स्टील के ग्लास को उम्मीदों के साथ ताकने से हुई। फिर ये रूटीन कब फिक्स हो गया याद नहीं कि मैया के चाय के ग्लास के अंतिम कुछ घूंट पर मुक्कू का नाम रहेगा। शायद कभी एक दो बार मैया से गलती...
कोई छह महीने पहले हमारे व्हाट्सएप ग्रुप गूंज में मेरी कुछ कविताओं पर प्रभात मिलिंद जी ने यादगार टिप्पणी दी थी, जो कुछ वजहों से सहेजे हुए रखा था। आज पहले उनकी समालोचनात्मक प्रतिक्रिया और फिर अपनी वो कविताएँ पोस्ट कर रहा हूँ, जिस पर प्रभात जी ने अपनी बातें रखी थी&nbs...
स्कूल - कालेज के दिनों में, कितने थेथर से होते थे न दोस्त ! साले, चेहरा देख कर व आवाज की लय सुनकर परेशानी भाँप जाते थे । एक पैसे की औकात नहीं होती थी, खुद की, पर फिर भी हर समय साथ खड़े रहते थे । और फिर फीलिंग ऐसी आती थी जैसे अंबानी/टाटा हो गया हूँ, पता नहीं किस किस...
पिछले ग्यारह वर्षों से ब्लॉग पर हूँ | "जिंदगी की राहें" के नाम से खुद की रचित कविताओं का ब्लॉग है | slow and steady के सिद्धांत पर रहा हूँ ! ब्लॉग पर बेशक पोस्ट करने के अंतराल में गैप रहता है लेकिन कोशिश रहती है लगातार अपडेट होती रहे ! इन्ही वजहों से साढ़े पाँच लाख...
पिछले कुछ दिनों से मोर्निंग वाक के चक्कर में रूट बदल बदल कर लोधी कॉलोनी के हर कोने को देख रहा हूँ, महसूस रहा हूँ। :) लोधी कॉलोनी और इसके इर्द गिर्द बेहद खुबसूरत हरियाली के साथ बहुत से जाने पहचाने स्मारक/बिल्डिंग/साईं मंदिर/गार्डन/स्टेडियम के साथ हेबिटेट स...