छूते हो मुझे तोमहसूस कर पाते हो क्यातरकीब़ मेरी रूह कीबनावट मेरे मन कीसहला पाते हो क्याथकन मेरे हौसलों कीसलवटें मेरे ख्वाबों कीछूते हो मुझे तोटटोल पाते हो क्याहंसी मेरे बचपन कीशोखी मेरे यौवन कीखदेड़ पाते हो क्याडर मेरे भीतर केपशेमानी मेरे जीवन कीछूते हो मुझे तोउभार...
ज़िन्दगी की कशमकश से परेशान बहुत है,दिल को न उलझाओ ये नादान बहुत है।यूं सामने आ जाने पर कतरा के गुजरना,वादे से मुकर जाना उसे आसान बहुत है।यादें भी हैं, तल्खी भी है, और है मोहब्बत,तू ने जो दिया दर्द का सामान बहुत है।अश्क कभी, लहू कभी, आँख से बरसे,बेदाग़ मोहब्बत का ये...
यात्रा कितनी भी कर ली जाएबहुत कुछ छूट ही जाता है।सफ़र परसब जल्दी में रहते हैंगंतव्य तकथक चुके होते हैं।उसने कहावह सफ़र पर हैवह इंतज़ार में रहीकि सफ़र कब खत्म हो।मुझे यात्राएँ पसंद हैं लेकिनयात्राएँ मुझे थका देती हैं।यात्रा में लोगों के साथकोई वह भी होता हैजो वहाँ...
22 22 22 2 उनकी बात सुनेगा कौन ।ज़िद पर आज़ झुकेगा कौन ।।की है बगावत जनता ने ।साहब तुम्हें चुनेगा कौन ।।बिक जाते हैं चैनल जब ।सच को आम करेगा कौन ।।दिल्ली की सर्दी से अब ।तन कर और लड़ेगा कौन ।।हम पर कीचड़ फेंक रहा ।तेरे...
दर्द सिमट आया आँखों में स्नेह-भाव को तन मन तरसे आज दर्द से भीगीं पलकें तुहिन बिंदु कण कण बन बरसे दुःसह वेदना कोण-कोण में रूप नवल प्रतिबिंब भरे हैं चूर्ण हो रहे मुकुल प्रतिच्छविआशाएँ कण कण बिखरे हैं सूने मन की राह गुंजरित कंठ सिसकियाँ ध्वनि चलती हैं नयनो...
पेन्टिग बलवीर मेहतास्त्रियाँ सुनती नहीं बुनती हैं....नित नए ख़्वाब नित नई उम्मीद के साथघर.. परिवार, परिवेश और... जीवन को रससिक्त रखने के वे जानती हैं.. जिस दिन वो सुनने लगेंगी संपूर्ण प्रकृति अपना संतुलन खो बैठेगी स्त्रियाँ कभी नहीं सहना चाहतींअपनी अस्मिता पर आघात...
टाट के परदे के पीछे से एक बारह तेरह साला चेहरा झांका वह चेहरा बहार के पहले फूल की तरह ताजा था और आँखे पहली मोहब्बत की तरह शफ्फाक लेकिन उसके हाथ में तरकारी काटते रहने की लकीरे थी और उन लकीरों में बर्तन मांजने की...
कोई दुःख इतना बड़ा नहीं होता...जितना मन ने बढ़ा लिया धीरे-धीरे..;पानी में पड़े तेल की बूँद की तरह..!न ही मन का ख़ालीपन इतना विस्तृत..;जिसमें समा जाए-पूरा पहाड़..!कोई अनुभूति इतनी गहरी नहीं होती कि उसके मापन के लिए असफल हो जाएँ- सारे निर्धारित मात्रक..!कोई रुदन इतना द्रा...
कभी कभी,,,लगता हैकहीं मेरे शब्द,,न चल दें ,,समापन रेखा की ओर,,मेरी संवेदनाएं ,,मेरे विरुद्ध ,,ना खड़ी हो जाएं,,,कदाचित,,चेतना शून्य,,ना हो जाए , मेरे भाव,,तभी ।।अचानक,,हृदय पोखर में,,समय का,, कंकड़ गिरता है,,तडाक,और,,सोच की परिधि,,विशाल होती जाती है,,इक छोटी वृत से...
प्रसन्न चित्त भावना, विषाद को निगल गयी।नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।निरख सुबह कि लालिमा, निशा प्रछन्न हो गयीगगन की ओर देखकर, धरा प्रसन्न हो गयीप्रभात में तरंग का, प्रवाह तेज हो गयाउषा ने आँख खोल दी, भ्रमर कली में खो गयाचमन में फूल खिल गया, बहार फिर मचल गयी।नयी न...