ब्लॉगसेतु

गुनगुनाती हूँ दिल में ,लेकिन गाना नहीं आतातभी तो  सुर में तेरे सुर मिलाना नहीं आता ।अफ़सुर्दा होती हूँ यूँ ही बेबात मैं जब भी किसी को भी मेरा मन बहलाना नहीं आता ।बेचैनियाँ इतनी घेरे हैं हर इक लम्हादिल को मेरे क्यूँ करार पाना नहीं  आता ।बेरौनक सी अपनी...
 यूँ ही ख्वाबों में एक दिन टहलते- टहलाते जा पहुँचे परलोक खुद  ही  बहलते -  बहलाते ।सामने था स्वर्ग का द्वार दिख रहा था बहुत कुछ आर  पार । न जाने कितनों की आत्माएँ इधर उधर डोल रहीं थीं ,आपस में न जाने ...
ज़िन्दगी की सड़क पर दौड़ते जाते हैं अक्सर ही अन्धाधुन्ध,बिना सोचे या कि बिना समझे ही कि हम किसे पाने कीहोड़ लिए अप्राप्य को प्राप्त करने की चाहत में ,छोड़ते जा रहे हैं बहुत कुछ जो हमें प्राप्त था । गिरते हैं संभलते हैं&n...
 जीवन के संगीत पर थिरकती रहतीं हैं  स्त्रियाँ नही होती ज़रूरत किसी साज़ की या कि किसी सुर ताल की ,मन और सोच की जुगलबंदी नचाती रहती है उसे अपनी थाप पर । कभी हो जाती है राधा चिर प्रतीक्षित प्रेम की प्रतीक्षा म...
 प्रकृति तो बदलती है निश्चित समय पर अपने मौसम , होते हैं निश्चित दिन - महीने ।लेकिन इंसान के-मन का मौसम कब बदल जाये पता ही नहीं चलता ।चेहरा ही बता देता है कि मौसम कुछ बदला सा है ।जब चढ़ता है ताप भावनाओं का तो  च...
 कहते हैं लोग कि बीती ताहि बिसार दे लेकिन --क्या हो सकता है ऐसा ?विगत से तो आगत है।सोच में तो समा जाता है सब कुछ रील सी ही चलती रहती है मन मस्तिष्क में ,सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा हुआ सा ,कोई सिरा छूटता ही नहीं पकड़ लो कोई भ...
उषा  किरण जी की एक रचना ---सुन रही हो न ---- इसी का जवाब है ये मेरी रचना  ।बन्द खिड़कियों के पीछे सेमोटी दीवारों को भेदजब आती है कोईमर्मान्तक चीखतो ठिठक जाते है बहुत से लोगकिसी अनहोनी आशंका से ।कुछ होते हैमहज़ तमाशबीन ,तो कुछ के चेहरे पर होती हैव्...
मुझको वो हासिल न था जो तुझको हासिल हुआ अल्फ़ाज़ यूँ ही गुम गए , गम जो फिर काबिज़ हुआ। अश्कों ने  घेरा   क्यों  हमें ये भी कोई   बात   हुईचाहत भले ही रहें अधूरी  ,हक़ अपना तो लाज़िम हुआ ।माँग कर गर जन्...
 छठे दशक काअंतिम  पायदानजीवन में अक्सरआते  रहेनित नए व्यवधान,खोजती रहीउनके स्वयं हीसमाधान,कभी मिलेकभी नहीं भी मिलेबसखुद से जूझ करखुद से टकरा करटूटती रहीजुड़ती रही ,आज उम्र केइस पड़ाव परसोचती हूँक्या मिल गयामुझे अपनामक़ाम ?नहीं !क्यों किजिस दिनमिल जाएगाम...
 श्रद्धांजलि देते देते लगने लगा है कि खुद हम भी किसी चिता का अंश बन गए हैं ।गर इस एहसास से निकलना है बाहर तो कर्म से च्युत हुए बिना जियो हर पल और निर्वहन करते हुए अपनी जिम्मेदारियों का सोचो कि&nb...