वर्षों पहले
बसंत की छटा देखने
गाँव आया था,
खेतों में फ़सलों पर
यौवन छाया था।
कहीं गाती थी
चिड़िया मधुर गीत,
कहीं फूल-तितली की
सुरभित पावन प्रीत।
नयनाभिराम रंगों का मेला
सुदूर...
वो सुबह जब
ओस से भरी देखी
लगा ज्यों रात ने
विरह की घड़ी देखी
घूँघट कोहरे का ओढ़कर
लाजवँती-से लजाते लाल सूरज की
रक्ताभ रश्मियाँ देखीं
चिकने हरे पत्तों पर
मरकरी-सी सजीं
शबनम की उज्ज्व...