ब्लॉगसेतु

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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अहा ! फरवरी कितनी प्यारी। कड़ी ठण्ड से पीछा छूटा सर्दी से गठ बंधन टूटा अब अलाव है नहीं जरूरी दूर हुई सबकी मज़बूरी बच्चे अब भरते किलकारी अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।1।बिस्तर से हट गय...
हर्षवर्धन त्रिपाठी
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तेरह दिनों के रामलीला मैदान में हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कवरेज करते-करते कब मैं अन्ना भक्त जैसा कुछ हो गया था। इसका मुझे अंदाजा ही नहीं लगा। और शायद मेरे जैसे हजारों लोग इसी भक्ति की अवस्था में पहुंच गए थे। ये स्वाभाविक था। अगर ये नहीं होता तो अस्वाभाविक हो...
अनंत विजय
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अपनी फसल को किसान बेहद मेहनत से तैयार करता है और जब फसल लहलहाने लगती है और तैयार हो जाती है तो इलाके का दबंग जमींदार अपने कारकुनों के साथ पहुंच कर फसल कटवा लेता है । यह दृश्य कई फिल्मों में कई बार फिल्माया गया है । अस्सी के दशक में बिहार में बहुधा ऐसे वाकए सुनने को...
अनंत विजय
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भारतीय राजनीति और समाज सेवा के क्षेत्र में अन्ना हजारे एक ऐसा नाम हैं जिसे दो हजार ग्यारह के पहले महाराष्ट्र के एक इलाके के ही लोग जानते थे । महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में अन्ना हजारे के गांव रालेगण सिद्धि को समाज सुधार के मॉडल के तौर पर देखा जाने लगा था । अन्ना ह...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के मंच से अरविंद केजरीवाल के भाषण देश के नौजवानों में जोश भरने वाले होते थे। रामलीला मैदान हो या जन्तर-मन्तर, केजरीवाल जब भी माइक सम्हालते देश की मीडिया जुट जाती उसके कवरेज के लिए। न्यूज चैनेलों के माध्यम से दूर-दूर तक केजरीवाल की...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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इस मिसरे को तरही ग़जल के लिए तय करने वाले उस्ताद शायर ने इसके मीटर की कई बारीकियाँ नोट करायी थीं, जो मुझे भूल गयीं। सच कहूँ तो वह सब मुझे समझ में ही नहीं आया था। मुशायरे की तय तारीख नजदीक आने की याद दिलायी गयी तो मैंने अपनी फेसबुक टाइमलाइन खोलकर देखा और यह ग़जलनुमा...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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आजकल जहाँ देखिए वहाँ नेताओं को गाली देती पब्लिक मिल जाएगी और उन गालियों पर ताली बजाती भीड़ भी। कांग्रेस का वंशवाद हो या भाजपा का संप्रदायवाद, समाजवादियों का मुस्लिम तुष्टिकरण हो या शिवसैनिकों का संकुचित क्षेत्रवाद, वामपंथी पार्टियों का मार्क्सवाद के नाम पर खोखला पाख...
अविनाश वाचस्पति
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मै अन्ना हजारे की बात से पूरी तरह सहमत हूँ, पत्रकारिता विकास का एक ऐसा स्तम्भ है जिसके जरिये किसी भी परिस्थिति में देश को बचाया जा सकता है ! आम जनता की आवाज उठाने का एक ऐसा माध्यम जो संसार के कोने कोने तक आसानी से जा सकती है ! गाँव की उन्नति तो रही है लेकिन उससे ज्...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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हमारा समाज बेईमानी, भ्रष्टाचार व अकर्मण्यता के प्रति उदासीन क्यों है?चार साल पहले लिखी एक पोस्ट में मैंने पूछा था कि यह सरकारी ‘असरकारी’ क्यों नहीं है? तब मैंने जिलों में अपनी तैनाती के अनुभव के आधार पर यह प्रश्न रखा था। पिछले चार साल में इस निराशाजनक स्थिति से उबर...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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लखनऊ से इलाहाबाद के लिए गंगा-गोमती एक्सप्रेस की यात्रा इस बार बहुत रोचक रही। लम्बी प्रतीक्षा के बाद पदोन्नति मिली तो उत्साह वश अपनी सेवा पुस्तिका पूरी कराकर मुख्यालय से संबंधित उस दफ़्तर तक इसे स्वयं पहुँचाने चल पड़ा था जहाँ से मेरी सेवा के क्लास-वन ऑफीसर्स की वेतन प...