ब्लॉगसेतु

Ashok Kumar
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अशोक कुमार पाण्डेयमुक्तिबोध की कविताओं को पढ़ते हुए लगातार यह लगता है जैसे सिर्फ़ दो कविताओं को लिखने या पूरा करने के लिए वह लगातार लिख रहे थे – ‘अँधेरे में’ और ‘ब्रह्मराक्षस।’ यह अनायास नहीं है कि दोनों के बिम्ब और दृश्य उनकी दूसरी तमाम कविताओं में मिल जाते हैं। गहर...
Ashok Kumar
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यह  कहानी  पाखी  के ताज़ा अंक में आई है. अब यहाँ ऑनलाइन पाठकों के लिए------------------------------------------कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं[1]·    कूलर में पानी ख़त्म हो गया था. गर्म हवा के साथ एक गुम्साइन सी गंध कमरे में भरती जा रही थी. म...
शरद  कोकास
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कल उड़न तश्तरी पर समीर भाई के सुभाषित का आनंद ले रहा था कि उनके एक सुभाषित पर नज़र पड़ी ..”प्रशंसा और आलोचना में वही फर्क है जो सृजन और विंध्वस में “ अरे.. मैने कहा यह तो मेरे ब्लॉग के काम की चीज़ है । याद आया अभी पिछले दिनों मैने एक पोस्ट में महावीर अग्रवाल द्वा...