कभी होता, उसके खर्राटों से वह ख़ुद जग जाता। जग जाता के साथ लेटे सब न जग जाएँ। सबके सोते रहने पर वह उठता। उठकर बैठ जाता। बैठना, थोड़ी रौशनी के साथ होता। रात उस खयाल में ख़ुद को अकेले कर लेने के बाद खुदसे कहीं चले जाने लायक न बचता, तो ख़ूब रोता। आँसू नहीं आते। याद आती। य...
पोस्ट लेवल : "अश्लील एकालाप"

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पता नहीं, जब मैंने इस तस्वीर को देखा, तबसे किन भावों से भर गया हूँ। इसे पल-पल अपने अंदर उतरते देना है। इसके बाद भी नहीं समझ नहीं पा रहा, यह क्या है? सोचता हूँ, तस्वीरें कितनी यात्राएं करती हैं। यह कहाँ से चली होगी। किस कैमरे से किसने कहाँ खींची होगी। कितने सालों ब...

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उस वक़्त उसकी काँख में कोई बाल नहीं था, जब पहली बार उसने उसे वहाँ चूमने के साथ अपनी दूसरी प्रेमिका की याद को विस्मृत करते हुए वह तस्वीर खींची थी। दोनों अभी एक-दूसरे के लिए नए-नए साथी बने हैं। वह अकसर अपनी सहेलियों से सुनती रहती। लड़कियों का ‘सेफ़ डिपॉज़िट’। वह उसकी एफ़ड...

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पता नहीं अंदर ख़ुद से कितने झूठे वादे कर रखे हैं।एक में हम शादी के बाद पहली बात अकेले घूमने निकलने वाले हैं। में सारी ज़रूरी चीजों में सबसे पहले कैमरे को संभालता हूँ। जिद करके उधार ही सही नौ हज़ार का डिजिटल कैमरा ले आता हूँ। कहीं पहाड़ पर जाएँगे, तब अपनी साथ वाली तसवी...

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पता नहीं कभी-कभी क्या होता है, हम चाहकर भी नहीं समझ पाते। शायद तभी उन बीत गए दिनों में लौट कर उन्हें दुरुस्त करने की ज़िद से भर जाते होंगे। अगर ऐसा न होता तब मुझे भी हलफ़नामे की तरह दोबारा उन बातों पर गौर करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। सोचता हूँ, अगर मेरे मन में वह ख़याल दो...

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जब कुछ दिन रुक जाओ तब ऐसे ही होता है। कितनी बातें एक साथ कहने को हो आती हैं। जबकि मन सबको धीरे से कह चुका है, कह देंगे इतमिनान से। पर कौन मानने वाला है। कोई नहीं मानता। कभी-कभी जब अपने चारों तरफ़ देखता हूँ तो लगता है, उन सबमें सुस्त क़िस्म का रहा होऊंगा। कछुए जैसा। त...

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कभी-कभी लगता है हम अपने आप को दोहरा रहे होते हैं। बार-बार वैसी ही बातें। उन्ही तरीकों से अपने को कहते हुए। जैसे कल। रात लिखने के दरमियान बराबर लगता रहा क्या कर रहा हूँ। जो मन में चल रहा है उसे कह क्यों नहीं पा रहा। अगर वह आ भी रहा है तो कितना। कैसे। क्या उसे ऐसे ही...