आत्म कथ्य : आत्म से साक्षात्कार का प्रयास और परमात्म की कृपा ही मेरे सारस्वत अनुष्ठानों का हेतु है। 'स्व' से 'सर्व' की साधना ही अभीष्ट है। इसीलिये सृजन सलिला किसी विधा विशेष तक सीमित नहीं है। गद्य-पद्य की प्रमुख विधाओं में लेखन के साथ अभियंता होने के नाते तकनी...
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रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार 2016 सम्मानित कथाकार विवेक मिश्रा (फ़ोटो © भरत तिवारी) (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); बेशक हिंदी साहित्य की दुनिया में कुछ न कुछ ऐसा चल रहा है, जिसके कारण गुटबंदी में लगातार बढ़ोतरी होती दिख रही...

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वह एक खाली-सी ढलती दोपहर थी। दिमाग बेचैन होने से बिलकुल बचा हुआ।किताबें लगीं जैसे बिखरी हुई हों जैसे. कोई उन्हें छूने वाला नहीं था. कभी ऐसा भी होता, हम अकेले रह जाते हैं।किताबों के साथ कैसा अकेलापन. उनकी सीलन भरी गंध मेरी नाकों के दोनों छेदों से गुज़रती हुई पता नहीं...

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जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, हम वापस अपने अंदर लौटने लगते हैं जैसे। जैसे कहीं अनजानी जगह फँसे रहने का एहसास अंदर-ही-अंदर चुभता रहता है। कोई बहाना होता, जो वापस ले जाता। पर बहाना ऐसा, जब हम खुश हो सकें। खुश होकर ख़ुद को देख सकें। ऐसा न हो जब हम लौटकर वापस...

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नवनीत पाण्डे हमारे समय के सजग कवि हैं! उनकी कवितायें लगातार मूल्यहीनता और अवसरवादिता पर प्रहार करती चलती हैं! वे लोक के प्रबल पक्षधर हैं। उनका मानना हैं कि सामान्य से विशेष बनता है अर्थात् हाशिए, सामान्य ही मुख पृष्ठ को मुख पृष...

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हम सब सपनों में रहने वाले लोग हैं। सपने देखते हैं। और चुप सो रहते हैं। उनमें कहीं कोई दीमक घुसने नहीं देते। बक्से के सबसे नीचे वाली तरी में छिपाये रहते हैं। कहीं कोई देख न ले। उसमें किसी की बेवजह आहट कोई खलल न डाल दे। सब वैसा का वैसा बना रहे जैसे सपनों में देखा है।...

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उस इमारत का रंग लाल है। अंग्रेजों के जमाने की। अभी भी है। ख़स्ताहाल नहीं हुई है। उसकी देखरेख करने वाले हैं। किसी लॉर्ड ने इसका शिलान्यास किया होगा। आज़ादी से पहले। कई बार उसे पत्थर को पढ़ा है, पर अभी याद नहीं है। यहाँ ख़ूब बड़े-बड़े कमरे हैं। जीने भी शानदार सीढ़ियों के सा...

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कभी-कभी लगता है हम अपने आप को दोहरा रहे होते हैं। बार-बार वैसी ही बातें। उन्ही तरीकों से अपने को कहते हुए। जैसे कल। रात लिखने के दरमियान बराबर लगता रहा क्या कर रहा हूँ। जो मन में चल रहा है उसे कह क्यों नहीं पा रहा। अगर वह आ भी रहा है तो कितना। कैसे। क्या उसे ऐसे ही...

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तुम्हारे जाते ही खुश हुआ था मैंअब न कोई रोकेगा,न टोकेगा,सब कुछ हमारे हाथ में होगाहमारे काम पर भीनज़र कोई नहीं रखेगा |तुम्हारे बिना कुछ दिनबड़ा अच्छा लगा था,अकेले होने के ख़याल सेमन मचलने लगा था |तुम्हारे जाने के इतने दिनों बादगुरूद्वारे में अर्चना करते हुए !तुम्हार...