चुनाव-प्रचार अंतिम चरण में कूद चुका था।नेताजी जनता के बिलकुल निकट थे।वे उसके चरणों में कूदने ही वाले थे कि क़रीबी कार्यकर्ता ने आचार-संहिता के हवाले से उन्हें रोक दिया।यह रुकावट उन्हें बहुत अखरी।वे अपनी पर उतर आए।जनता के लिए जो बहुरंगी-पिटारी उनके पास थी,उसे खोल दि...
पोस्ट लेवल : "आश्वासन"

241
लघुव्यंग्य-हमने तो यही कहा थायूँ तो राजधानी बहुत सी विशेषताओं के अलावा हड़तालों ,जुलुस और रैलियों की भीड़ के लिए भी पहचानी जाती है । ऐसे ही एक कर्मचारी संगठन की हड़ताल जारी थी ।लगभग माह भर बाद सरकार ने उन्हें वार्ता हेतु बुलाया। आखिरकार शासन और हड़ताली प्रतिनिधियो...

175
मन की टूटी आस लिखूं मैं,अंतस का विश्वास लिखूं मैं,फूलों का खिलने से लेकरमिटने का इतिहास लिखूं मैं।रोटी को रोते बच्चों का,तन के जीर्ण शीर्ण वस्त्रों का,चौराहे बिकते यौवन काया सपनों का ह्रास लिखूं मैं,किस किस का इतिहास लिखूं मैं।रिश्तों का अवसान है देखा,बिखरा हुआ मका...

175
बीता सो बीत गया, एक वर्ष और गया।सपने सब धूल हुएआश्वासन भूल गया,शहर अज़नबी रहाऔर गाँव भूल गया,एक वर्ष और गया।तन पर न कपड़े थेपर अलाव जलता था,तन तो न ढक पायेपर अलाव छूट गया,एक वर्ष और गया।खुशियाँ बस स्वप्न रहींअश्क़ न घर छोड़ सके,जब भी सपना जागाजाने क्यों टूट गया,एक वर्ष...