वह एकदम शांत क़िस्म की दीवारों वाला घर था। छिपकली भी आहिस्ते से उनसे चिपकी रहती और कोई जान भी न पाता। जाले दरवाज़े के पीछे छिपकर सालों से वहीं बने हुए थे। पलस्तर धीरे-धीरे अम्मा की अधीर आँखों की तरह उखड़ रहा था। सफ़ेदी को सीलन के साथ पपड़ी बने ज़माना बीत गया, किसी को को...
पोस्ट लेवल : "कमरे में कमरा"

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कोई भी उस कमरे में कभी भी दाख़िल होता, तो उसे लगता, यह कमरा एक जमाने में किसी दफ़्तर का हिस्सा रहा होगा। टूटी मेज़। धूल खाती फ़ाइलें। कोनों में पड़ी कुर्सियाँ। कटे-फटे जूते। मकड़ी के जाले। खिड़की से आती हवा। इधर-उधर बिखरे पड़े पन्ने। चूहों की लेड़ीयाँ। बजबजाता फ़र्श। फटा हुआ...

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खिड़कियों पर पर्दे डालकर इस लाल अँधेरे में बैठे बहुत देर से सोच रहा हूँ। कई सारी बातें चलकर थक चुकी हैं। कुछ मेरे बगल ही बैठी हैं। कुछ सामने एक बंद किताब की ज़िल्द के अंदर छिपी हुई हैं। डायरी लिखना एक दम बंद होने की कगार पर है। लिखने का मन होते हुए भी पूरे दिन की भाग...

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कई दिनों से सोच रहा हूँ मेरे लिखने में ऐसा क्या है जो चाहकर भी गायब होता रहा है। इस खाली कमरे का एकांत पता नहीं किस तरह अपने अंदर भरकर यहाँ बैठा रहा हूँ। दीवारें बदल जाती हैं पर मन वहीं कहीं अकेले में रह रहकर अंदर लौटता रहता है। यह बहुत अजीब है कि जब कहीं चेहरे और...

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सब कुछ वैसा ही है, जैसा कभी नहीं सोचा था। इस पंक्ति के बाद एकदम से सुन्न हो गया। आगे क्या कहूँ? कुछ कहने के लिए हैं भी या ऐसे ही दोहराव में हम अपने बिगड़ने को देखते रहते हैं। कई सारी बातें हैं, जिन्हे कहना है पर समेटने का सलीका थोड़ा भूलता गया हूँ। अभी खिड़की के बाहर...

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वह कभी अकेले निकल जाता और किसी पेड़ के नीचे बैठ दिमाग में घूमती हरबात को सुनने की कोशिश करता। आज शाम अँधेरे के साथ बरसात में सड़कें गीली थीं। उसके मन के भीतर वह किसी पल फिसल गया। इतने सालों में उसने कभी ध्यान से नहीं सोचा लगातार उस चारदीवारी में उसकी बातों की जगह सिम...

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मेरे बगल मेज़ पर दो कागज़ के टुकड़े रखे हुए हैं और मन में कई सारे ख़त। मन इस मौसम में कहीं खोया-खोया सा कहीं गुम हो गया। धूप इतनी नहीं है, पर आँखें जादा दूर तक नहीं देख पा रहीं। उनके नीचे काले घेरे किसी बात पर अरझे रहने के बाद की याद की तरह वहीं रुके रह गए। रातें हैं,...

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उसने अपने एक कमरे वाले शहर के बाहर कई कमरों वाले शहर की संभावनाओं से कभी इंकार नहीं किया। पर उसे पता था कोई जितना भी कहे बाहर का शहर उसके अंदर कभी दाखिल नहीं हो सका। उसने अपने शहर को नाम दिया, घर। घर ही उसकी एक छोटी-सी दुनिया थी। वह बाहर कहीं भी रहता, वापस इस दुनिय...

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वह इतनी छोटी जगह थी, जिसे कमरा कहना, किसी कमरे की चार दिवारी को तोड़कर फ़िर से कमरा बनाने की तरह होता। ऊपर पक्की छत नहीं थी। ऐबस्टस की टीन थी। बरसात में वह बूंदों के साथ कई धुनें एकसाथ गुनगुना रही होतीं। गर्मियों में इतनी गर्म कि उसके नीचे बैठे रहना मुफ़्त में स्टीमबा...

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कमरे में सिर्फ़ कमरा था। वह न खाली था। न भरा था। वह कुछ-कुछ खाली था, कुछ-कुछ भरा था। इस कुछ खाली, कुछ भरे कमरे में वह बालदार लड़का, कुछ कम ख़ूबसूरत लड़की के पास बैठा रहा। वह कुछ कमसूरत लड़की बालदार लड़के के पास बैठी रही। लड़के ने चुपके से अपने मन से कहा। तुम इतनी भी ख़ूबसू...