तीसरी मंज़िल। सबसे ऊपर। इसके ऊपर आसमान। आसमान में तारे। अँधेरे का इंतज़ार करते। इंतज़ार चीलों के नीचे आने तक। वह वहाँ तब नहीं देख पाती, चमगादड़ों की तरह। इन्हे आँख नहीं होती देखने के लिए। वह तब भी नहीं छू जाते कभी किसी पत्ते को भी। हरे-हरे पत्ते। तुम्हारे गाल की तरह म...
पोस्ट लेवल : "कल्चरल टेक्स्ट"

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हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहाँ हम ख़ुद नहीं जानते कि यह दौर हमारे साथ क्या कर रहा है। यह पंक्ति, अपने पाठक से बहुत संवेदना और सहनशीलता की माँग करती है कि वह आगे आने वाली बातों को भी उतनी गंभीरता से अपने अंदर सहेजता जाये। जब हम, किसी दिन अपनी ज़िन्दगी, इसी शहर में बि...

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उसमें बहुत सारी चीज़ें या तो अपने आप गुम हो गई हैं या गुम कर दी गयी हैं। चीजों का न दिखना अकसर हमें ऐसा ही करता जाता है। लगता है, ऐसा बहुत कुछ था जो दिख नहीं रहा, उसे कौन कहेगा। मैंने ऐसा जान बूझकर नहीं किया। कभी हो जाता हो, तो पता नहीं। इसने कहीं से भी शहर को ढक नह...

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ड्राफ़्ट में देखा तो तारीख़ आठ मार्च दो हज़ार तेरह की है। उसके साल भर पहले, आठ मार्च के दिनशहर के शहर बने रहने की स्त्री व्याख्या लिखी थी, तभी समझ गया था, स्त्री-पुरुष दोनों एकसाथ चलते हुए किसी भी निर्मिति को बनाते हैं। भले हम उसके अलग-अलग पाठ बनाते जाएँ, पर वह...

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कभी-कभी ख़ुद को दोहराते रहा चाहिए। अच्छा रहता है। गहराई नापते रहो। इसका अंदाज़ा बहुत ज़रूरी है। पता रहता है, हम कहाँ से चले थे और आज कहाँ है। बड़े दिनों से सोच रहा था, कहाँ से शुरू करूँ। मन में एक ख़ाका घूमते-घूमते थक गया। बस हरबार यही सोचता रहा, कैसे दिन हुआ करते थे।...

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असहमतिअपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हमारे मास्टर रहे हैं। हम आज भी उनसे काफ़ी कुछ सीखते हैं। हमने उनसे बात को तार्किक आधार से कहने का सहूर सीखा और लिखकर उसे कहने का कौशल भी। लेकिन वह एनडीटीवी के 'मुक़ाबला' में कैसी बात कह रहे हैं। समझ नहीं आता। वह जब अल्पसंख्यक...

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इसे ढाबली कहते हैं, पर अभी बंद है। एक अरुण की भी है, पान की। वह बंद है, वह खुली है। जो ट्रॉली के बिलकुल पीछे खुली है, वही बिसातखाना है। इसकी कहानी फ़िर कभी।

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दोनों ने चार महीने पहले इस दफ़्तर में ‘एमटीएस’ की हैसियत से आना शुरू किया था। लड़का दसवीं पास था, लड़की बारहवीं फ़ेल। यह दो अक्टूबर के दो-तीन हफ़्ते बीत जाने बाद की पहली शाम नहीं थी, जब इन दोनों को पाँच बजे के बाद भी रुकना पड़ रहा था। रुकने के लिए सिर्फ़ लड़की को कहा जाता।...

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वह अचानक एक पोस्ट में ख़ुद को पाकर हैरान रह गया। उसकी हैरानी को डर में बदलते देखने का एहसास किसी भी तरह से रोमांचित नहीं कर रहा था। वहाँ उसका नाम नहीं था, बस कुछ इशारे थे। बहुत बारीक-सी सीवन उधेड़ते सब उसे देख लेते। यह कैसा होता होगा, जब कोई हमारे बारे में लिखन...

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विज्ञापन मूलतः एक विचार है, जिसे कंपनी अपनी ‘ऍड एजेंसी’ द्वारा हर संभावित उपभोक्ता की तरफ़ संप्रेषित करती है। ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ कहने वाली मोबाइल कंपनी, कैसे इस विज्ञापन क्षितिज से गायब हो गयी, उसे जानना बहुत रोचक होगा। उनके पीछे हटने के कारण क्या हैं? क्या व...