एक रचनाघुटना वंदन*घुटना वंदन कर सलिल, तभी रहे संजीव।घुटने ने हड़ताल की, जीवित हो निर्जीव।।जीवित हो निर्जीव, न बिस्तर से उठने दे।गुड न रेस्ट; हो बैड, न चलने या झुकने दे।।छौंक-बघारें छंद, न कवि जाए दम घुट ना।घुटना वंदन करो, किसी पर रखो न घुटना।।*मेदांता अस्पताल दिल्ली...
पोस्ट लेवल : "कवि"

4
मम्मी-पापा तुम्हें देख कर,मन ही मन हर्षाते हैं।जब वो नन्ही सी बेटी की,छवि आखों में पाते है।।--जब आयेगा समय सुहाना, देंगे हम उपहार तुम्हें।तन मन धन से सब सौगातें, देंगे बारम्बार तुम्हें।।--दादी-बाबा की प्यारी, तुम सबकी राजदुलारी हो।घर आ...

4
--सीधा-सादा. भोला-भाला।बच्चों का संसार निराला।।--बचपन सबसे होता अच्छा।बच्चों का मन होता सच्चा।--पल में रूठें, पल में मानें।बैर-भाव को ये क्या जानें।।--प्यारे-प्यारे सहज-सलोने।बच्चे तो हैं स्वयं खिलौने।।--बच्चों से होती है माता।ममता से है माँ का नाता।।--बच्चों से है...

216
..............................

4
तीखी-तीखी और चर्परी।हरी मिर्च थाली में पसरी।।तोते इसे प्यार से खाते।मिर्च देखकर खुश हो जाते।।सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती।किन्तु पेट में जलन मचाती।।जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं।सुबह-सुबह वो पछताते हैं।।दूध-दही बल देने वाले।रोग लगाते, मिर्च-मसाले।।शाक-दाल को घर में ल...

4
मैं अपनी मम्मी-पापा के,नयनों का हूँ नन्हा-तारा। मुझको लाकर देते हैं वो,रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।।--मुझे कार में बैठाकर,वो रोज घुमाने जाते हैं।पापा जी मेरी खातिर,कुछ नये खिलौने लाते हैं।। --मैं जब चलता ठुमक-ठुमक,वो फूले नही समाते हैं।जग के स्वप्न सलोने,उनकी...

197
एक अच्छी ज़िंदगी क्या होती हैएक अच्छी ज़िंदगी के लिएलोग कितना स्ट्रगल करते हैंक्या स्ट्रगल करने से ज़िंदगी अच्छी हो जाती हैक्या ज़िंदगी की दुश्वारियाँ स्ट्रगल को समझती हैंनहीं ना !*****ज़िंदगी हर बार आपको ग़लत साबित कर दे ऐसा ज़रूरी नहींमगर ज़िंदगी अक्सर ऐसा ही करती है।**...

331
महक बहुत अजीब होती है. नास्टैल्जिया लिए हुए अक्सर. हवाओं में सर्दियीं वाली खुशबु महसूस होने लगी है. घर में हूँ, पटना में... और पुराने अटैची से जाड़ो के कपड़े, रजाई निकाल लिए गए हैं... सूटकेस में बंद जाड़ों के कपड़ों से बड़ी अनोखी महक आती है, बहुत कुछ याद दिलाती है. बशी...