चित्र -साभार गूगल एक ग़ज़ल -लिखने वाला अपने मन की प्रेम कहानी लिखता हैकोई राँझा-हीर तो कोई राधा रानी लिखता हैलिखने वाला अपने मन की प्रेम कहानी लिखता हैमीरा को भी सबने देखा अपनी-अपनी नज़रों सेकोई कहता जोगन कोई प्रेम दीवानी लिखता हैसब अपनी तकरीर में केवल बात...
पोस्ट लेवल : "कहानी"

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इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक समाप्त हो गया और अब हम तीसरे दशक में प्रवेश कर चुके हैं। रचनात्मक लेखन में भी इन दो दशकों में कई बदलाव देखने को मिले। कुछ लेखकों ने अपनी कहानियों में या उपन्यासों में नए प्रयोग किए, भाषा के स्तर पर भी और कथ्य के स्तर पर भी। बावजूद इसके हि...

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उसकी बीवी पहले गुस्ल करती थी .....और ये बात उसको हमेशा ही अजीब लगी थी कि एक औरत इस नियत से गुस्ल करे.....बीवी के बाल लंबे थे जो कमर तक आते थे। गुस्ल के बाद उन्हें खुला रखती। बिस्तर पर आती तो तकिये पर सर टिकाकर बालों को फर्श तक लटका देती। पानी बूंद बूंद कर टपकता और...

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"दादी माँ, दादी माँ...मैं भी आपके साथ चलता हूं सब्जी खरीदने।" दस साल के अनिल ने कहा। "नहीं बेटा, बाहर कोरोना है!" "अब तो सब अनलॉक हो रहा है। देखों न रास्ते पर भी कितनी भीड़ है। प्लीज़ मुझे ले चलो न। कितने महीने हो गए मुझे आपके साथ बाजार गए। मैं मास्क लगाकर...

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"मैं भगवान को हाज़िर नाज़िर जान कर कसम खाता हूँ कि ब्रिटेन की महारानी के प्रति निष्ठा रखूँगा।" अंग्रेज़ी में बोले गए ये शब्द एवं इनके बाद के सभी वाक्य पंडित गोपाल दास त्रिखा को जैसे किसी गहरे कुएँ में से आते प्रतीत हो रहे थे। वे हैरो के सिविक सेंटर में बीस पच्चीस ग...

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राज, एक दस साल का लड़का छोटी सी टोकरी में सिंघाड़े लेकर सुबह से गली-गली सिंघाड़े बेचने घूम रहा था। लेकिन आज तो उसकी बोहनी भी नहीं हुई थी। सुबह से शाम के सात बज रहे थे। अब तो पैर भी जबाब देने लगे थे। पेट में चूहे दौड़ रहे थे सो अलग! दोपहर में उसने थोड़े से सिंघाड़े खाएं थ...

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विरासत :विष्णु शर्मा कृत पंचतंत्र से कहानी 'एक और एक ग्यारह' *एक बार की बात हैं कि बनगिरी के घने जंगल में एक उन्मुत्त हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नहीं समझता था। बनगिरी में ही एक पेड़ पर एक चिड़िया व चिड...

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विरासत : कहानी ग्यारह वर्ष का समयरामचंद्र शुक्ल*दिन-भर बैठे-बैठे मेरे सिर में पीड़ा उत्पन्न हुई : मैं अपने स्थान से उठा और अपने एक नए एकांतवासी मित्र के यहाँ मैंने जाना विचारा। जाकर मैंने देखा तो वे ध्यान-मग्न सिर नीचा किए हुए कुछ सोच रहे थे। मुझे द...