मुण्डकोपनिषद १परा सत्य अव्यक्त जो, अपरा वह जो व्यक्त।ग्राह्य परा-अपरा, नहीं कहें किसी को त्यक्त।।परा पुरुष अपरा प्रकृति, दोनों भिन्न-अभिन्न।जो जाने वह लीन हो, अनजाना है खिन्न।। जो विदेह है देह में, उसे सकें हम जान।भव सागर अज्ञान है, अक्षर जो वह ज्ञान।। मन इंद्रिय अ...
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सॉनेट लता*लता ताल की मुरझ सूखती।काल कलानिधि लूट ले गया।साथ सुरों का छूट ही गया।।रस धारा हो विकल कलपती।।लय हो विलय, मलय हो चुप है।गति-यति थमकर रुद्ध हुई है।सुमिर सुमिर सुधि शुद्ध हुई है।।अब गत आगत तव पग-नत है।।शारदसुता शारदापुर जा।शारद से आशीष रही पा।शारद माँ क...

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कुण्डलियाकार्य शाला**कुंडलिया वादे कर जो भुला दे, वह खोता विश्वास.ऐसे नेता से नहीं, जनता को कुछ आस.जनता को कुछ आस, स्वार्थ ही वह साधेगा.भूल देश-हित दल का हित ही आराधेगा.सलिल कहे क्यों दल-हित को जनता पर लादे.वह खोता विश्वास भला दे जो कर वादे १९-१२-२०१७ तन की मनहर बा...

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छंद सप्तक १. *शुभगति कुछ तो कहो चुप मत रहो करवट बदल- दुःख मत सहो *छवि बन मनु महान कर नित्य दान तू हो न हीन- निज यश बखान*गंग मत भूल जाना वादा निभानासीकर बहाना गंगा नहाना *दोहा:उषा गाल पर मल रहा, सूर्य विहँस सिंदूर।कहे न तुझसे अधिक है, सुंदर कोई हूर।।*सोरठासलिल...

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कुण्डलिया प्रश्नोत्तर *लिखते-पढ़ते थक गया, बैठ गया हो मौन। पूछ रहा चलभाष से, बोलो मैं हूँ कौन? बोलो मैं हूँ कौन, मिला तब मुझको उत्तर पाए खुद को जान, न क्यों अब तक घनचक्कर?तुम तुम हो; तुम नहीं, अन्य खुद जैसे दिखते मन भटकाए बिना, न...

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कुण्डलिया राजनीति आध्यात्म की, चेरी करें न दूर हुई दूर तो देश पर राज करेंगे सूरराज करेंगे सूर, लड़ेंगे हम आपस में सृजन छोड़ आनंद गहेँगे, निंदा रस में देरी करें न और, वरें राह परमात्म की चेरी करें न दूर, राजनीति आध्यात्म की***संजीव, १३.११.२०१८http://divyanarmada.blogs...

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कार्यशाला- दोहा / रोला/ कुण्डलिया मन का डूबा डूबता , बोझ अचिन्त्य विचार ।चिन्तन का श्रृंगार ही , देता इसे उबार ॥ -शंकर ठाकुर चन्द्रविन्दु देता इसे उबार, राग-वैराग साथ मिल। तन सलिला में कमल, मनस का जब जाता खिल।। चंद्रबिंदु शिव भाल, सोहता सलिल-धार बन।...

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मुक्तक-पंचतत्व तन माटी उपजा, माटी में मिल जाना हैरूप और छवि मन को बहलाने का हसीं बहाना है रुचा आपको धन्य हुआ, पाकर आशीष मिला संबल है सौभाग्य आपके दिल में पाया अगर ठिकाना है *सलिल-लहर से रश्मि मिले तो, झिलमिल हो जीवन नदियारश्मि न हो तम छाये दस-दिश, बंजर हो जग की बग...

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हर पल हिंदी को जिएँ, दिवस न केवल एक।मानस मैया मानकर, पूजें सहित विवेक।।कार्यशाला षट्पदी (कुण्डलिया )*आओ! सब मिलकर रचें, ऐसा सुंदर चित्र। हिंदी पर अभिमान हो, स्वाभिमान हो मित्र।। -विशम्भर शुक्ल स्वाभिमान हो मित्र, न टकरायें आपस में। फूट पड़े तो शत्रु, जयी हो रहे न बस...

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कुण्डलिया परमपिता ने जो रचा, कहें नहीं बेकार ज़र्रे-ज़र्रे में हुआ, ईश्वर ही साकार ईश्वर ही साकार, मूलतः: निराकार है व्यक्त हुआ अव्यक्त, दैव ही गुणागार है आता है हर जीव, जगत में समय बिताने जाता अपने आप, कहा जब परमपिता नेhttp://divyanarmada.blogspot.in/