कुण्डलिया :दन्त-पंक्ति श्वेता रहे.....संजीव 'सलिल'*दन्त-पंक्ति श्वेता रहे, सदा आपकी मीत.मीठे वचन उचारिये, जैसे गायें गीत..जैसे गायें गीत, प्रीत दुनिया में फैले.मिट जायें सब झगड़े, झंझट व्यर्थ झमेले..कहे 'सलिल' कवि, सँग रहें जैसे कामिनी-कंत.जिव्हा कोयल सी रहे,...
पोस्ट लेवल : "कुण्डलिया"

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छंद सलिला: पहले एक पसेरी पढ़ / फिर तोला लिख...छंद सलिला सतत प्रवाहित, मीत अवगाहन करेंशारदा का भारती सँग, विहँस आराधन करें*जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह-प्रवेश त्यौहारसलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार*पाठ १०२नव प्रयोग: सरसी कुण्डलिया*कुंडलिया छंद (एक दोहा + एक रोला, दो...

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हास्य कुण्डलिया*राम देव को देखकर, हनुमत लाल विभोर।श्याम देव के सँग में, बाल मचाते शोर।।बाल मचाते शोर, न चाहें योग करें सब।दाढ़ी-मूँछें बाल, श्याम; आधी धोती अब।।तुंदियल गंजे सूट, टाई शू पहन चेककर।करें योग फट गई, सिलाई छिपे देखकर।।***२७.७.२०१८ http://divyanarmada...

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कुण्डलिया छंद *कुण्डलिनी चक्र आधारभूत ऊर्जा को जागृत कर ऊर्ध्वमुखी करता है. कुण्डलिनी छंद एक कथ्य से प्रारंभ होकर सहायक तथ्य प्रस्तुत करते हुए उसे अंतिम रूप से स्थापित करता है.नाग के बैठने की मुद्रा को कुंडली मारकर बैठना कहा जाता है. इसका भावार्थ जमकर या स्थिर...

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एक कुण्डलियाऔकातअमिताभ बच्चन-कुमार विश्वास प्रसंग*बच्चन जी से कर रहे, क्यों कुमार खिलवाड़?अनाधिकार की चेष्टा, अच्छी पड़ी लताड़अच्छी पड़ी लताड़, समझ औकात आ गयी?क्षमायाचना कर न समझना बात भा गयीरुपयों की भाषा न बोलते हैं सज्जन जीबच्चे बन कर झुको, क्षमा कर दें बच्चन जी...

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छंद परिचयकुण्डलिया का वृत्त है दोहा-रोला युग्मआचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'*[लेखक परिचय: जन्म: २०-८-१०५२, मंडला मध्य प्रदेश। शिक्षा: डी. सी. ई., बी. ई. एम्. आई. ई., एम्. ए. (अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र), एलएल. बी., डिप्लोमा पत्रकरिता। प्रकाशित कृतियाँ: १. कलम के देव भक्त...

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कुण्डलिया नारी पर नर मर मिटे, है जीवन का सत्यमरता हो तो जी उठा, यह भी नहीं असत्ययह भी नहीं असत्य, जान पर जान लुटाताजान जान को सात जन्म तक जान न पाताकहे सलिल कविराय, मानिये माया आरीछाया दे या धूप, नरों पर भारी नारी ***http://divyanarmada.blogspot.in/

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कुण्डलिया*मन से राधाकिशन तब, 'सलिल' रहे थे संग.तन से रहते संग अब, लिव इन में कर जंग..लिव इन में कर जंग, बदलते साथी पल-पल.कौन बताए कौन, कर रहा है किससे छल?.नाते पलते मिलें, आजकल केवल धन से.सलिल न हों संजीव, तभी तो रिश्ते मन से.२८.३.२०१०*http://divyanarmada.blogspot....

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चूड़ी चूड़ी खनकी हाथ में, पायल छनके पाँव।इठलाती अब आ रही, सजनी अपने गाँव।।सजनी अपने गाँव, मिलेगी सखियाँ सारी। हरियाली चहुँ ओर, यहाँ पर है मनुहारी।कह राधेगोपाल, सभी खाते हैं पूड़ी।नारी के तो हाथ, सजी है हरदम चूड़ी।

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कजरा कजरा नैनों से कहे, सुन लो मेरी बात। दो नैनों की है मिली, मुझको भी सौगात।। मुझको भी सौगात, कहे सब मुझको काला। देती मेरा साथ, सदा ही बिंदी माला।कह राधे गोपाल, लगा चोटी में गजरा। सुन लो मेरी बात, कहे नैनों से कजरा।।