हास्य कुण्डलिया*राम देव को देखकर, हनुमत लाल विभोर।श्याम देव के सँग में, बाल मचाते शोर।।बाल मचाते शोर, न चाहें योग करें सब।दाढ़ी-मूँछें बाल, श्याम; आधी धोती अब।।तुंदियल गंजे सूट, टाई शू पहन चेककर।करें योग फट गई, सिलाई छिपे देखकर।।***२७.७.२०१८http://divyanarmada.blogs...
पोस्ट लेवल : "कुण्डलिया"

0
संजीव 'सलिल'कुण्डलिया (कुंडलिनी) छंद :.*कुण्डलिनी चक्र आधारभूत ऊर्जा को जागृत कर ऊर्ध्वमुखी करता है. कुण्डलिनी छंद एक कथ्य से प्रारंभ होकर सहायक तथ्य प्रस्तुत करते हुए उसे अंतिम रूप से स्थापित करता है.नाग के बैठने की मुद्रा को कुंडली मारकर बैठना कहा जाता है. इसका भ...

0
कार्यशाला:बीनू भटनागर राहुल मोदी भिड़ रहे, बीच केजरीवाल,सत्ता के झगड़े यहाँ,दिल्ली बनी मिसाल।संजीवदिल्ली बनी मिसाल, अफसरी हठधर्मी कीहाय! सियासत भी मिसाल है बेशर्मी की लोकतंत्र की कब्र, सभी ने मिलकर खोदी जनता जग दफना दे, कजरी राहुल मोदी*** कार्यश...

0
एक कुण्डलिया औकात अमिताभ बच्चन-कुमार विश्वास प्रसंग *बच्चन जी से कर रहे, क्यों कुमार खिलवाड़?अनाधिकार की चेष्टा, अच्छी पड़ी लताड़अच्छी पड़ी लताड़, समझ औकात आ गयी?क्षमायाचना कर न समझना बात भा गयीरुपयों की भाषा न बोलते हैं सज्जन जीबच्चे बन कर झुको, क्षमा कर...

0
कार्यशाला : दोहा - कुण्डलिया*अपना तो कुछ है नहीं,सब हैं माया जाल। धन दौलत की चाह में,रूचि न सुख की दाल।। -शशि पुरवार रुची न सुख की दाल, विधाता दे पछताया।मूर्ख मनुज क्या हितकर यह पहचान न पाया।।सत्य देख मुँह फेर, देखता मिथ्या सपना।चाह न सुख संतोष...

0
कार्यशाला: एक रचना दो रचनाकार सोहन परोहा 'सलिल'-संजीव वर्मा 'सलिल'*'सलिल!' तुम्हारे साथ भी, अजब विरोधाभास।तन है मायाजाल में, मन में है सन्यास।। -सोहन परोहा 'सलिल'मन में है सन्यास, लेखनी रचे सृष्टि नव।जहाँ विसर्जन वहीं निरंतर होता उद्भव।।पा-खो; आया-गया है, हँस-...

0
©️ कार्य शाला दोहा से कुण्डलिया - कुण्डलिया के विविध अंत *** अपना तो कुछ है नहीं,सब हैं माया जालधन दौलत की चाह में,रूचि न सुख की दाल - शशि पुरवार रुची न सुख की दाल, विधाता दे पछताया।मूर्ख मनुज क्या हितकर यह पहचान न पाया।।सत्य देख...

0
कुण्डलियाहरियाली ही हर सके, मन का खेद-विषाद.मानव क्यों कर रहा है, इसे नष्ट-बर्बाद?इसे नष्ट-बर्बाद, हाथ मल पछतायेगा.चेते, सोचे, सम्हाले, हाथ न कुछ आयेगा.कहे 'सलिल' मन-मोर तभी पाये खुशहाली.दस दिश में फैलायेंगे जब हम हरियाली..http://divyanarmada.blogspot.in/

0
कार्यशालादोहा से कुण्डलिया*दोहा- आभा सक्सेना दूनवीपपड़ी सी पपड़ा गयी, नदी किनारे छांव।जेठ दुपहरी ढूंढती, पीपल नीचे ठांव।।रोला- संजीव वर्मा 'सलिल'पीपल नीचे ठाँव, न है इंची भर बाकीछप्पन इंची खोज, रही है जुमले काकीसाइकल पर हाथी, शक्ल दीदी की बिगड़ीपप्पू ठोंके ताल, सलिल...

0
कार्यशाला कुण्डलिया दोहा- आभा सक्सेना रदीफ़ क़ाफ़िया ढूंढ लो, मन माफ़िक़ सरकार| ग़ज़ल बने चुटकी बजा, हों सुंदर अशआर||रोला- संजीव वर्मा 'सलिल'हों सुंदर अशआर, सजें ब्यूटीपार्लर में।मोबाइल सम बसें, प्राण लाइक-चार्जर मेंदिखें हैंडसम खूब, सुना भगे माफियाजुमलों की बरसात, करेगा...