वैश्विक हताशा की परिणतियों का दस्तावेज वैश्वीकरण की चमकीली आँधी अब अपने तीसरे दशक की आख़िरी पारी खेल रही है। कारपोरेट लालच और उपभोक्तावाद चरम पर हैं। जो लोग बाज़ार के गृहप्रवेश से सदमे में थे वे अब अपने मोबाइल फ़ोन के स्क्रीन पर तरह-तरह की चीजें देखकर गूँगे...
पोस्ट लेवल : "छत"

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छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए इस मौसम में ‘ओल’ महत्वपूर्ण हो जाता है । रबी फसल के लिए खेत की जुताई-बुआई के पूर्व किसान यह अवश्य देखता है कि खेत में ओल की स्थ्ति क्या है । ओल मूलतः संस्कृत भाषा का शब्द है । विशेष बात यह है कि ओल का जो अर्थ संस्कृत में है ठीक वही अर्थ छ...

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हम सभी जानते हैं कि हमारे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ न सिर्फ शारीरिक बल्कि वातावरण की स्वच्छता पर भी निर्भर होता है और जब इस स्वच्छता की कमी हमारे घर की रसोई में लगातार बनी रहे तो घर-पर...

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आज तमाम नेता और समाज सेवा के नाम पर प्रचार करने वाले कुछ लोग शौक और लोकप्रियता के लिए झाड़ू उठाते फिर रहे है ! जो अपने घर में झाड़ू,पोछा नही कर सकते वो अब स्वच्छता का ज्ञान पेल रहे है ! इस अभियान को फ़ैलाने का उद्देश्य तो सकारात्मक था पर इस अभियान के नाम पर वोट बैंक ब...

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छत्तीसगढ़ में आज से 40-50 साल पहले तक ददरिया गीत अपने मौलिक स्वरूप में विद्यमान था । इस मौलिक रूप की कुछ विशेषताएं थीं- खेतों में काम करने वाले श्रमिक इसे गाया करते थे । इस गीत के साथ किसी वाद्य-यंत्र का प्रयोग नहीं होता था । दो अवसरों पर यह गीत अधिक सुनाई देता था-...

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घनाक्षरी सलिला :छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग.संजीव 'सलिल'*अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान, धरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे.बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव, महुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे..बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय, थोरको न ओतियाय, टूरी इठलावथे.भारत के...

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बस्तर में गंगयुगीन स्थापत्य की अनुपम विरासत – मामा भांजा मंदिर ---------बस्तर के इतिहास में सर्वाधिक उपेक्षा गंग शासकों को प्राप्त हुई है यद्यपि दो सौ वर्ष से कुछ अधिक समय तक (498 – 702 ई.) इस राजवंश का दण्डकारण्य वनांचल में आधिपत्य रहा है। सर्वप्रथम बस्तर की...

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जब कोई पूछता है कहाँ गए वो.....? (1 के बाद 1 फिर भी मैं 1)राह में पत्थर है मगर मालूम है मेरा बहना उसेमैं नदी की तरह हूँ और मुझे रहना है वैसेहौसलों को जगाकर बड़ी दूर तक चला आयाराह में मिलने वाले रोड़ों को छोड़ आयाथीं मुसीबतें बहुत जब रोकने की वजह बन गए वोलेकिन बढ़ने के...

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"छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी - आरती गीत"गीतकार - अरुण कुमार निगम, छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी, पइयाँ लागँव तोरपइयाँ लागँव तोर ओ दाई, पइयाँ लागँव तोर तहीं आस अस्मिता हमर अउ, तहीं आस पहिचानआखर अरथ सबद के दे दे, तँय मोला वरदान।।खोर गली मा छत्तीसगढ़ के, महिमा गावँव...

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छत्तीसगढ़ी दोहा*हमर देस के गाँव मा, सुन्हा सुरुज विहान. अरघ देहे बद अंजुरी, रीती रोय किसान.. *जिनगानी के समंदर, गाँव-गँवई के रीत. जिनगी गुजरत हे 'सलिल', कुरिया-कुंदरा मीत.. *महतारी भुइयाँ असल, बंदत हौं दिन-रात. दाई! पैयाँ परत हौं. मूंडा पर धर हात.. *जाँघर तोड़त...