क्लिक क्लिक क्लिक!कैमरे के शटर का क्लिकतीन अलग अलग क्षणसहज समेटे हुए परिदृश्य !पहली तस्वीरपूर्णतया प्राकृतिक व नैसर्गिककल कल करती जलधाराचहचहाती चिरैया, फुदकती गोरैयादूर तक दिखती हरियालीडूबता दमकता गुलाबी सूरजपैनोरमा मोड़ मेंखिंची गयी कैमरे की क्लिक !!दूसरा था कोलाजए...
पोस्ट लेवल : "तस्वीर"

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सड़क किनारे कहीं दिवाल नहीं थी, इसलिए पेड़ ही दीवार है। बसों का घंटाघर। यह ढाबली, पैट्रोल पंप है। जब वह आ जाएगा, यह गुम हो जाएगी।

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इसे ढाबली कहते हैं, पर अभी बंद है। एक अरुण की भी है, पान की। वह बंद है, वह खुली है। जो ट्रॉली के बिलकुल पीछे खुली है, वही बिसातखाना है। इसकी कहानी फ़िर कभी।

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(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); हम जब भी मिला करते हैं क्यों लोग गिला करते हैंकदम तपती राहों पर कब थमते हैं फूल प्यार के खिजां में खिला करते हैं...

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घर नहीं होता बेज़ानदारछत से घिरी चार दीवारों का,घर के एक एक कोने में छुपा इतिहास जीवन का।खरोंचें संघर्ष कीजीवन के हर मोड़ की,सीलन दीवारों पर बहे हुए अश्क़ों की,यादें उन अपनों की जो रह गये बन केएक तस्वीर दीवार की,गूंजती खिलखिलाहट अब भी इस सूने घर मे...
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पटना का वह घर जहाँ बचपन ने उड़ान भरी थी,पटना बाद में तो कभी नहीं जा ही सकी, जिनके साथ वो हसीन यादें जुड़ीं थी वो तो कब से तारे बन गए. आज ४० वर्षों बाद भी बाहर से यह घर वैसा ही खड़ा है कुछ परिवर्तन नहीं दिखा। २०- २५ कमरों का यह घर जहाँ चप्पे चप्पे पर बचपन की अनगिन...

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अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। मन में आ रहा था कि क्यों न इस बार इसका एक प्रयोग अपने रचनाओं में करूँ. बहुत दिनों की यह मन की उपज आज कुछ पढ़ने के लिए आपके सामने प्रस्तुत है...........जब हमरे नेता जी के परिभाषा बदलि जाई हमरे देशवा के तब तस्वीर बदलि जाई ...

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कभी कभी तू यूं ही दिख जाता है तस्वीरों में मुझको पर ऐ खुदा!क्यूँ नहीं मिलता वो मेरी तक़दीरों में मुझको।कोई तो खता की होगी गए जनम में हमने के हर पल पाता हूँ जंजीरों में खुद को।प्यार देने आया हूँ प्यार ही देना चाहता हूँ पर जाने हो गई है आज नफरत क्यूँ तुझको। चल जी लें...

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शनिवार तीस अगस्त, शाम साढ़े छह बजने के आधे घंटे बाद, लगभग सात बजे। उधर से छोटे जन का फ़ोन आया। दादी नहीं रहीं। दिमाग ठीक रहे, तब वाक्य भी ठीक आयें। पर ख़ैर। उनके ठीक होने का कोई मतलब नहीं रह गया, जिनको ठीक होना था, वो अब चली गईं। मंगलवार उन्हे लखनऊ से वापस ले आए। डॉक्...

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बाढ़ कैसी होती है? इसके रेणु के 'ऋणजल धनजल' जैसे कई जवाब हो सकते हैं। फ़िर इसके बाहर यह कैसी भी होती हो, पर गौरव सोलंकी के फ़ेसबुक कवर पर लगी तस्वीर और वहाँ लिखी कविता की तरह बिलकुल नहीं होती। तस्वीर धुंधली है, पर लड़की दिखाई दे रही है। बगल में झोला दबाये, एक हाथ से छ...