सिर्फ तुम्हारे लिए, एक खुला पत्रनोट: इसका किसी भी प्रकार से किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई संबंध नहीं है।तुमसे कोई रिश्ता नहीं। मन में असीम प्यार था कभी उड़ेल नहीं सकता था। क्योंकि तुम्हारी सादगी और भोलेपन पर किसी और का नजराना था। मेरे...
पोस्ट लेवल : "तुम्हारे लिए"

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कभी-कभी हम भी क्या सोचने लग जाते हैं। कैसे अजीब से दिन। रात। शामें। हम सूरज के डूबने के साथ डूबते नहीं। चाँद के साथ खिल उठते हैं। काश! यह दुनिया सिर्फ़ दो लोगों की होती। एक तुम। एक मैं। दोनों इसे अपने हाथों से बुनते, रोज़ कुछ-न-कुछ कल के लिए छोड़ दिया करते। कि कल मुड़...

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जब हम सब खाना खा लेते हैं, तब सोचने लगता हूँ कि वह जल्दी से बर्तन माँज लें और हम दोनों हर रात कहीं दूर निकल आयें। हम दोनों की बातें पूरे दिन इकट्ठा होती गईं बातों के बीच घिरकर, झगड़ों के बगल से गुज़रकर सपनों के उन चाँद सितारों में कहीं गुम हो जातीं। हर रात ऐसा ही होन...

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पता नहीं अंदर ख़ुद से कितने झूठे वादे कर रखे हैं।एक में हम शादी के बाद पहली बात अकेले घूमने निकलने वाले हैं। में सारी ज़रूरी चीजों में सबसे पहले कैमरे को संभालता हूँ। जिद करके उधार ही सही नौ हज़ार का डिजिटल कैमरा ले आता हूँ। कहीं पहाड़ पर जाएँगे, तब अपनी साथ वाली तसवी...

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कभी-कभी सोचता हूँ हम भाग कर शादी कर लेते तो क्या होता? मेरे पास आज तक नौकरी नहीं है। इन दोनों बातों में प्रश्न-उत्तर वाला संबंध नहीं है फ़िर भी दोनों एक-दूसरे का जवाब हैं। यह दोनों बातें आपस में ऐसे गुथी हुई हैं, जैसे तुम्हारी कल शाम वाली बँधी चोटियाँ। उनमें गुथे हु...

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सबसे मूलभूत सवाल है, हम लिखते क्यों हैं? यह लिखना इतना ज़रूरी क्यों बन जाता है? मोहन राकेश अंदर से इतने खाली-खाली क्यों महसूस करते हैं? उनके डायरी लिखने में अजीब-सी कशिश है। बेकरारी है। जिन सपनों को वह साथ-साथ देखते चलते हैं, उनके अधूरे रह जाने की टीस है। वह अंदर-ही...

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तो उस सड़क पर कोई नहीं है। सिर्फ़ हम दोनों है। क्योंकि यह सपना हम दोनों का है। वह सड़क है भी या नहीं, पता नहीं। पर दिख सड़क जैसी ही रही है। हो सकता है हम जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे हों, वह पीछे से गायब होती हमारी आँखों में समाती जा रही हो। रात के कितने बज रहे हैं, पता न...

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इन बातों को आज इतने महीने पहले ही ‘ड्राफ़्ट’ करके ‘शेड्यूल’ कर रहा हूँ। तीन चार सपने तरतीब से लगा दिये हैं। के आगे वाले दिनों में कहीं इसे लगाना रह न जाये। भूलने वाला प्राणी नहीं हूँ, फ़िर भी.. मन कर रहा है। तारीख़ वही है जब हम सच में चारबाग़ स्टेशन के लिए चल दिये होंग...

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तुम: अच्छा सोचो अगर आपको मुझे प्रपोस करना हुआ तो कैसे करेंगे?मैं: तुम्हें बहराइच के कचहरी रोड ले जाएंगे। लस्सी पिलएंगे। वहीं कह देंगे। जैसे लस्सी मीठी है वैसे हम दोनों अगर साथ हों तो ज़िंदगी भी खुशनुमा हो जाएगी। इसपर तुम या तो मुस्काती या अपना सैंडील निकाल मेरे सर प...

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कितने दिन हो गए, इस घर नहीं आ पाया। अनकही बातों से ख़ुद को भरता रहा। सोचता रहा बस, मौका तो लगे, सब कह दूँगा। तुम्हारे कान के पास आकर। चुपके से लटों को हटाकर। उन होंठों को हल्के से छूकर। उँगलियों के खाली हिस्सों को भरते हुए। आहिस्ते से कुछ-कुछ न कहते हुए। आँखों में आ...