कभी होता, उसके खर्राटों से वह ख़ुद जग जाता। जग जाता के साथ लेटे सब न जग जाएँ। सबके सोते रहने पर वह उठता। उठकर बैठ जाता। बैठना, थोड़ी रौशनी के साथ होता। रात उस खयाल में ख़ुद को अकेले कर लेने के बाद खुदसे कहीं चले जाने लायक न बचता, तो ख़ूब रोता। आँसू नहीं आते। याद आती। य...
पोस्ट लेवल : "दिल दरबदर"

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उस वक़्त उसकी काँख में कोई बाल नहीं था, जब पहली बार उसने उसे वहाँ चूमने के साथ अपनी दूसरी प्रेमिका की याद को विस्मृत करते हुए वह तस्वीर खींची थी। दोनों अभी एक-दूसरे के लिए नए-नए साथी बने हैं। वह अकसर अपनी सहेलियों से सुनती रहती। लड़कियों का ‘सेफ़ डिपॉज़िट’। वह उसकी एफ़ड...

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सपना। इस एक शब्द में ऐसी दुनिया है, जहाँ हम सब चले जाना चाहते हैं। कोई भी ऐसा टुकड़ा जो हमें अपनी तरफ़ चुंबक की तरह खींचता रहता है। खींचना शहद की तरह मधुमक्खी का भी होता है और उस छोटे नवजात बच्चे का अपनी असहाय लेटी कमज़ोर माता की तरफ़ भी। जैसे गाडियाँ खींची चली आती हैं...

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मैं लिखना चाहता हूँ वह शब्द, जो आज से पहले कभी किसी ने नहीं लिखे हों। वह एहसास जो किसी ने न महसूस किए हों। कहीं से भी ढूँढ़ना पड़े, उन्हे खोजकर ले आऊँगा। उन्हें ढूँढ़ने में कितना भी वक़्त बीत जाए, पर वह मिल जाएँ, एकबार। कभी मन करता है, बस ऐसे ही उनकी तरह गुम होते रहना...

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कभी-कभी सोचता हूँ, जिस तरह ख़ुद को बेतरतीब लगने की कोशिश हम सब कभी-न-कभी अपने अंदर करते रहते हैं, उनका सीधा साधा कोई मतलब नहीं निकलता। यह बिलकुल वैसी ही बात है जैसे लिखने का ख़ूब मन हो और तभी प्यास लग जाये। पानी की बोतल कमरे में दूर रखी है। इसलिए उठना पड़ेगा। पर यकायक...

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रात अभी शुरू हुई है। मन में न जाने कितनी बातें एक-दूसरे को धकेलते हुए मरी जा रही हैं। कोई भी किसी का इंतज़ार नहीं करना चाहती। बस एकबारगी कह दूँ तो उन्हे चैन पड़े। पर उन्हें एकसाथ यहाँ कहूँगा तो कोई मतलब भी बन पड़े, कह नहीं सकता। इसलिए तरतीब होनी चाहिए। एक सलीका सबको स...

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{यह भी बारिश में होने की एक स्टीरियोटाइप कहानी है। छोटी-सी कहानी। बारिश के पानी में भीगते हुए भागने की कहानी। उनके पास छाता नहीं है, जिसे हम छतरी कहते हैं। इसलिए दोनों भीग जाएँगे।} बूँदें थीं, कि रुक नहीं रही थी। उन्हे तीन दिन हो गए, लगातार। अपने वजन को सहन न...