जब कभी गुज़रोगी मेरी गली सेतो मेरी पीड़ा तुम्हें किसी टूटे प्रेमी कासंक्षिप्त एकालाप लगेगीपूरी पीड़ा को शब्द देना कहाँ सम्भव?मैंने तो बस इंसान होने की तमीज़ को जिया हैअपनी कविताओं के ज़रिए...मन के गहन दुःख को जो व्यक्त कर सकेंवो सृजन करने का मुझमें साहस कहाँ?डूबते...
पोस्ट लेवल : "दुःख"

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दोस्तों, शीर्षक 'जिंदगी में थोड़ा सा दुःख जरूरी है...' पढ़ कर शायद आप सोच रहे होंगे कि आज मैं ये कैसी बात कर रहीं हूं...कोई भी इंसान यह नहीं चाहेगा कि उसकी जिंदगी में थोड़े से दुःख के लिए भी कोई जगह हो। हर इंसान यहीं चाहता है कि उसकी जिंदगी में सिर्फ़ और सिर्फ़ सुख ही ह...

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इस वर्ष, 2020 का आज अंतिम दूसरा दिन, सेकेण्ड लास्ट डे है. पिछले कई दिनों से बहुत से मित्रों, परिचितों के सन्देश मिल रहे हैं जिसमें इस साल के बारे में उनके विचार पढ़ने को मिल रहे हैं. ये इंसानी फितरत होती है कि इन्सान अपने मनोभावों को तत्कालीन सन्दर्भों से जोड़कर व्यक...

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अकसर कहने-सुनने में आता है कि अँधेरे में परछाई भी साथ छोड़ देती है। इसका सीधा सा अर्थ इस बात से लगाया जाता है कि लोग मुश्किल समय में, किसी कठिनाई में साथ छोड़ देते हैं। ऐसा सत्य भी है मगर यही अंतिम सत्य नहीं है। कठिनाई में भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो लोगों की ताक...

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जाने कैसे मर-मर कर कुछ लोग जी लेते हैं दुःख में भी खुश रहना सीख लिया करते हैंमैंने देखा है किसी को दुःख में भी मुस्कुराते हुएऔर किसी का करहा-करहा कर दम निकलते हुएसंसार में इंसान अकेला ही आता और जाता हैअपने हिस्से का लिखा दुःख खुद ही भोगता हैठोकरें इंसान...

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नवगीत:सुख-सुविधा में मेरा-तेरादुःख सबका साझा समान हैपद-अधिकार करते झगड़े अहंकार के मिटें न लफ़ड़े धन-संपदा शत्रु हैं तगड़े परेशान सब अगड़े-पिछड़े मान-मनौअल समाधान हैमिल-जुलकर जो मेहनत करते गिरते-उठते आगे बढ़ते पग-पग चलते सीढ़ी चढ़ते तार और को खुद भी तरते पगतल भू करतल वितान...

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'आधुनिक मीरा' महादेवी वर्मा जी की आज दिनांक 11 सितम्बर 2016को 29वीं पुण्यतिथि पर उनकी इस महान रचना के द्वारा उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि — मैं नीर भरी दुख की बदली!स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसाक्रन्दन में आहत विश्व हँसानयनों में दीपक से जलते,पलकों में निर्झारिणी मचली!...

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(१) प्रेम जो प्रेमिका को खाता हैउसके हाथों ने छत नहीं अचानक आसमान को छू लिया. नए-नए प्रेम का असर दिख गया. ढीठ मन सप्तम स्वर में गा दिया गोया दुनिया को जताना चाह रही हो कि अब तो उसका जहाँ, प्रेम की मखमली जमीन है बस क्योंकि प्रेम उरूज़ पर था.फिर एक रोज चौखट पर रखा दिय...

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यादें समय-असमय चली आती हैं, कभी परेशान करने तो कभी प्रसन्न करने. इनको आने के लिए न तो किसी से अनुमति की आवश्यकता होती है और न ही इनके आने का कोई समय निर्धारित होता है. क्या घटना है, क्या स्थिति है, कैसी परिस्थिति है इससे भी कोई लेना-देना नहीं, बस इन यादों का मन हुआ...

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बरसों पहलेएक खेल खेला करते थे हम लोगविष- अमृत नाम था शायद...!!भागते - भागते जब कोईछू लेता था किसी कोतो विष कहा जाता थाऔर वो एक टक पुतले के जैसेरुक जाता था....ना हिलता था ना कुछ बोल पाता था...फिर जब कोई और उसे छू लेता तोअमृत बन जाता थाखेलता था पहले के जैसेभागता था.....