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पोस्ट लेवल : "नवगीत"

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सॉनेटधीर धरकर•पीर सहिए, धीर धरिए।आह को भी वाह कहिए।बात मन में छिपा रहिए।।हवा के सँग मौन बहिए।।मधुर सुधियों सँग महकिए।स्नेहियों को चुप सुमिरिए।कहाँ क्या शुभ लेख तहिए।।दर्द हो बेदर्द सहिए।।श्वास इंजिन, आस पहिए।देह वाहन ठीक रखिए।बनें दिनकर, नहीं रुकिए।।असत् के आगे न झ...

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सॉनेटदयानन्द•शारद माँ के तप: पूत हे!करी दया आनंद लुटाया।वेद-ज्ञान-पर्याय दूत हे!मिटा असत्य, सत्य बतलाया।।अंध-भक्ति का खंडन-मंडन। पार्थिव-पूजन को ठुकराया। सत्य-शक्ति का ले अवलंबन।। आडंबर को धूल मिलाया।। राजशक्ति से निर्भय जूझे। लोकशक्त...

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सॉनेट रस*रस गागर रीते फिर फिर भर।तरस न बरस सरस होकर मन।नीरस मत हो, हरष हुलस कर।।कलकल कर निर्झर सम हर जन।।दरस परस कर, उमग-उमगकर।रूपराशि लख, मादक चितवन।रसनिधि अक्षर नटवर-पथ पर।।हो रस लीन श्वास कर मधुबन।।जग रसखान मान, अँजुरी भर।नेह नर्मदा जल पी आत्मन!कर रस पान, प...

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सॉनेटरस*रस गागर रीते फिर फिर भर।तरस न बरस सरस होकर मन।नीरस मत हो, हरष हुलस कर।।कलकल कर निर्झर सम हर जन।।दरस परस कर, उमग-उमगकर।रूपराशि लख, मादक चितवन।रसनिधि अक्षर नटवर-पथ पर।।हो रस लीन श्वास कर मधुबन।।जग रसखान मान, अँजुरी भर।नेह नर्मदा जल पी आत्मन!कर रस पान, पुलक जय...

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दोहा मुकतक बीत गईँ कितनी ऋतुएँ, बीते कितने सालकोयल तजे न कूकना, हिरन न बदले चालपर्व बसंती हो गया, वैलेंटाइन आजप्रेम फूल सा झट झरे, सात जन्म कंगाल*निशि दिन छटा बसंत की, देखें तन्मय मौन। आभा अंजलि में लिए, सजा रहा जग कौन।।सॉनेट बसंत*पत्ता पत्ता...

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सॉनेटक्यों?*अघटित क्यों नित घटता हे प्रभु?कैसे हो तुम पर विश्वास?सज्जन क्यों पाते हैं त्रास?अनाचार क्यों बढ़ता हे विभु?कालजयी क्यों असत्-तिमिर है? क्यों क्षणभंगुर सत्य प्रकाश?क्यों बाँधे मोहों के पाश?क्यों स्वार्थों हित श्वास-समर है?क्यों माया की छाया भाती?क्यों का...

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कृति चर्चा :'गाँधी के आँसू' : सामायिक विसंगतियों की तहकीकात आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'[कृति विवरण : गाँधी के आँसू, लघुकथा संग्रह, कनल डॉ. गिरिजेश सक्सेना, प्रथम संस्करण २०२१, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ १६४, /मूल्य २००/-, आईसेक्ट प्रकाशन भोपाल। ]*सा...

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मुण्डकोपनिषद १परा सत्य अव्यक्त जो, अपरा वह जो व्यक्त।ग्राह्य परा-अपरा, नहीं कहें किसी को त्यक्त।।परा पुरुष अपरा प्रकृति, दोनों भिन्न-अभिन्न।जो जाने वह लीन हो, अनजाना है खिन्न।। जो विदेह है देह में, उसे सकें हम जान।भव सागर अज्ञान है, अक्षर जो वह ज्ञान।। मन इंद्रिय अ...

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सॉनेट लता*लता ताल की मुरझ सूखती।काल कलानिधि लूट ले गया।साथ सुरों का छूट ही गया।।रस धारा हो विकल कलपती।।लय हो विलय, मलय हो चुप है।गति-यति थमकर रुद्ध हुई है।सुमिर सुमिर सुधि शुद्ध हुई है।।अब गत आगत तव पग-नत है।।शारदसुता शारदापुर जा।शारद से आशीष रही पा।शारद माँ क...