कोरोना के संकट के दौरान पुस्तकें पढ़कर समय बिताना एक बेहतर विकल्प है। बाजार आदि भले ही खुल गए हैं लेकिन बहुत आवश्यक होने पर ही वहां जाना होता है। लोगों से मिलने-जुलने वाली संस्कृति पर भी फिलहाल विराम लगा हुआ है। पिछले करीब अस्सी दिन में कई किताबें पढ़ने का सुयोग बन...
पोस्ट लेवल : "नामवर सिंह"

0
कोरोना वायरस के संकट के बीच जब पूर्ण लॉकडाउन चल रहा था और साहित्यिक सभाएं और गोष्ठियां बंद हो गई थीं, तो हिंदी साहित्य से जुड़े लेखकों ने फेसबुक पर एकल गोष्ठियां करनी शुरू कर दीं। कई साहित्यिक संस्थाओं और प्रकाशकों ने भी हिंदी की विभिन्न विधाओं के लेखकों का लाइव कर...

0
1.बचपन में अंग्रेजी के शिक्षक पिता की टेबल पर जिन किताबों से मेरा साबका पडता था उनमें शेक्सपीयर के कम्पलीट वर्क्स के अलावे दिनकर की कविताओं का संकलन 'चक्रवाल', मुक्तिबोध की 'भूरी-भूरी खाक धूल' के अलावा नामवर सिंह की 'दूसरी परंपरा की खोज' और 'कवि...

0
कविता में प्रत्येक शब्द और पंक्ति पर विचार करते हैं लेकिन कहानी में नहीं। कहानी की भी उसी तरह से व्याख्या होनी चाहिए | नामवर पर विश्वनाथ - 2साभार, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी. प्रति सहेजना चाहें तो : साहित्य अकादमी, संस्कृति भवन, वाणगंगा चौराहा, भोपाल (म.प्र.) -...

0
रेशम के लच्छे जैसी स्वर लहरियाँ | नामवर पर विश्वनाथ - 1नामवरजी ने आलोचक के रूप में जितनी ख्याति पाई उतनी ख्याति वह कवि रूप में भी पा लेते — विश्वनाथ त्रिपाठीमध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल की हिंदी मासिक (अरसे से बंद) 'साक्षात्कार' का एक बार फिर जीवित होना —&...

0
एक थे राजेन्द्र यादव। हिंदी में कहानियां लिखते थे। हंस पत्रिका के संपादक थे। नामवर सिंह उनको विवादाचार्य कहते थे। राजेन्द्र यादव को विवादों में मजा आता था। उनके पास खबरों में बने रहने की कला थी। वो तब दुखी होते थे जब बहुत दिनों तक उनका नाम मीडिया में नहीं उछलता था,...

0
प्रो सुधीश पचौरी प्रख्यात आलोचक हैं। उन्होंने लंबे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य किया और वहां के उप कुलपति भी रहे। उनकी दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। हिंदी में उत्तर-आधुनिकता की अवधारणा को स्थापित करने का श्रेय उनको ही दिया जाता है। उन्ह...

0
हिंदी साहित्य जगत में नामवर जी की उपस्थिति एक आश्वस्ति की तरह थी। उनके निधन के बाद यह आश्वस्ति थोड़ी कम हो गई है। खत्म हो गई इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्योंकि नामवर सिंह की कृतियां हमारे साथ हैं। यह हमारे भारतीय संस्कार में है कि किसी भी व्यक्ति के निधन के बाद हम उ...

0
हजारीप्रसाद द्विवेदी का नाम कबीर के साथ उसी तरह जुड़ा है जैसे तुलसीदास के साथ रामचंद्र शुक्ल का। हिंदी में द्विवेदीजी पहले आदमी हैं जिन्होंने यह घोषणा करने का साहस किया कि ''हिंदी साहित्य के हजारों वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन...

0
यह कविता मैंने 1989-90 में लिखी थी। तब पटना से सीपीआई का एक दैनिक जनशक्ति निकला करता था, उसमें आलोचक व कवि डॉ.खगेन्द्र ठाकुर ने मेरी दो कविताएं छापी थीं, जिनमें एक यह भी थी। 2000 में जब मेरा तरीके से पहला कविता संकलन परिदृश्य के भीतर निकला तो मैंने उसकी कविताओं...