परम्परा ******* मन के अवसाद को चूड़ियों की खनक, बिन्दी के आकार होठों की लाली और मुस्कुराहट में दफन कर खिलखिलाकर दूर करना परम्परा है स्त्रियाँ परम्परा को बड़े मन से निभाती हैं।&nb...
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नव पल्लव झूम उठते हैं , डालियाँ बल खाने लगती हैं। दादुर , मोर , पपीहे सरगम छेड़ने लगते हैं तो लोकजीवन भला कैसे पीछे रह जाये। क्यों न वह भी झूमे-नाचे और गाये। इसी मनभावन सावन के मौसम में मल्हार और झूलों के पींगों से रंग जाता है जन जीवन। निभाई जाती हैं परम्पराएँ...

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मजे की बात ये है कि उक्त वीडियो में आप सरस्वती नदी को लुप्त होते हुऐ देख सकते हैं.हम सभी ने पवित्र नदियों गँगा, यमुना और सरस्वती के बारे मे सुना ही है मगर देखा केवल गँगा, यमुना को है. इस वीडियो में दिख रही नदी को सरस्वती बताया जा रहा है. इस स्थान पर आकर...

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जायसी का पद्मावत और भंसाली की पद्मावती वाया मिथक, कल्पना और भंसालीबाजीराव मस्तानी फ़िल्म से सबको रोमांचित तथा उद्भूत कर देने वाले सञ्जय लीला भंसाली, दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह इस बार लेकर आ रहे हैं पद्मावती। एक रानी थी चित्तौड़ की पद्मिनी जिसे पद्मावती के नाम से भी...

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आचार्य चतुरसेन शास्त्री हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण गौरव नक्षत्र हैं l आपका जन्म २६ अगस्त १८९१ को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ था l आपका लेखन किन्ही ख़ास विधा में बांधा नहीं जा सकता किन्तु इतिहास की पृष्ठभूमि के उपन्यास लेखन में कोई आपके आस-पास भी नहीं l लगभग पच...

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गत अंक से आगे...!!! 4. धर्म के वास्तविक महत्व को समझने की कोशिश करें: आदमी किसी भी समाज में पैदा हो, लेकिन दो चीजें उसके जन्म के साथ ही उससे जुड़ जाती हैं. एक है “जाति” और दूसरा है “धर्म”. संसार में अधिकतर यह नियम सा ही बन गया है कि जो जिस जाति में पैदा होगा उस...

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अंडमान निकोबार की यात्रा करने की इच्छा बहुत लम्बे समय से मन में थी. इसके मूल में एकमात्र कामना पोर्ट ब्लेयर स्थित सेलुलर जेल के दर्शन करना रहा था. जिस स्थान में देश की आज़ादी के दीवानों ने ज़ुल्म सहकर भी उफ़ तक नहीं की, उस स्थान के दर्शन करने की उत्कंठा सदैव से मन में...

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गत अंक से आगे...हम अपने आसपास की चीजों को जब समझने की कोशिश करते हैं तो हमें समझ आता है कि इस समाज में कितना कुछ है जिसका हमारी जिन्दगी से कोई सीधा सरोकार नहीं है, और कितना कुछ ऐसा है जिसे हमें अपनाने की जरुरत है. अमूमन तो ऐसा होता है कि हम अपने सामाजिक परिवेश में...

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‘आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है, आते जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है’. सन 1977 में आई फिल्म ‘अपनापन’ का यह गीत काफी लोकप्रिय गीत रहा है और मनुष्य जीवन के सन्दर्भ में काफी प्रासंगिक है. इस गीत का मुखड़ा मनुष्य जीवन के सफ़र के साथ भी जोड़ा जा सकता है. आदमी इस दुनिया म...

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मनुष्य चेतना का प्रतिबिम्ब है और यही इसकी वास्तविक पहचान है. वैसे अगर चेतना के इस दायरे को मनुष्य से बाहर की दुनिया पर भी लागू किया जाए तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. जब हम इस बात को स्वीकारते हैं कि इस सृष्टि के कण-कण में इसे रचने वाली चेतना समाई है तो सभी...