मुक्तक सलिला *प्रात मात शारदा सुरों से मुझे धन्य कर।शीश पर विलंब बिन धरो अनन्य दिव्य कर।।विरंचि से कहें न चित्रगुप्त गुप्त चित्र हो।नर्मदा का दर्श हो, विमल सलिल सबल मकर।।*मलिन बुद्धि अब अमल विमल हो श्री राधे।नर-नारी सद्भाव प्रबल हो श्री राधे।।अपराधी मन शांत निबल हो...