गीत*किसके-किसके नाम करूँ मैं, अपने गीत बताओ रे!किसके-किसके हाथ पिऊँ मैं, जीवन-जाम बताओ रे!!*चंद्रमुखी थी जो उसने हो, सूर्यमुखी धमकाया हैकरी पंखुड़ी बंद भ्रमर को, निज पौरुष दिखलाया है''माँगा है दहेज'' कह-कहकर, मिथ्या सत्य बनाया हैकिसके-किसके कर जोड़ूँ, आ मेरी जान बचाओ...
पोस्ट लेवल : "पुरुष विमर्श"

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पुस्तक चर्चा-----इन्द्रधनुष ----स्त्री-पुरुष विमर्श पर उपन्यास --- -----लेखक --डा श्याम गुप्त ----------समीक्षक -डा वी वे ललिताम्बा, प्राचार्य व विभागाध्यक्ष ,हिन्दी विभाग , मैसूर विश्व विद्यालय -------प्रकाशक --सुषमा प्रकाशन , आशियाना, लखनऊ डा ललित...

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कार्य शाला बात से बात *चलो तुम बन जाओ लेखनी ... लिखते हैं मन के काग़ज पर ... जिंदगी के नए '' फ़लसफ़े ''!! - मणि बेन द्विवेदी *कभी स्वामी, कभी सेवक, कलम भी जो बनाते हैंगज़ब ये पुरुष से खुद को वही पीड़ित बताते हैंफलसफे ज़िन्दगी के समझ कर भी नर कहाँ समझे? जहाँ ठुकराए जाते...

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एक दोहा-*जब चाहा स्वामी लगा, जब चाहा पग-दास कभी किया परिहास तो, कभी दिया संत्रास*http://divyanarmada.blogspot.in/

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ड्राफ़्ट में देखा तो तारीख़ आठ मार्च दो हज़ार तेरह की है। उसके साल भर पहले, आठ मार्च के दिनशहर के शहर बने रहने की स्त्री व्याख्या लिखी थी, तभी समझ गया था, स्त्री-पुरुष दोनों एकसाथ चलते हुए किसी भी निर्मिति को बनाते हैं। भले हम उसके अलग-अलग पाठ बनाते जाएँ, पर वह...

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पता नहीं वह उस पल के पहले किन ख़यालों से भर गया होगा। यादें कभी अंदर बाहर हुई भी होंगी? बात इतनी पुरानी भी नहीं है। कभी-कभी तो लगता अभी कल ही की तो है। दोनों एक वक़्त पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर खड़े, अपने आगे आने वाले दिनों के खवाबों ख़यालों में अनदेखे कल के सपने ब...