साहित्य में विवादों की लंबी परंपरा रही है, कई बार साहित्यक सवालों को लेकर मुठभेड़ होती है तो कई बार विचारधारा की टकराहट देखने को मिलती है तो कई बार लेखकों के बीच आरोप प्रत्यारोपों से मर्यादा की रेखा मिटती नजर आती है । वर्ष दो हजार सोलह भी इन साहित्यक विवादों से अछू...
पोस्ट लेवल : "प्रभु जोशी"

0
साहित्यक पत्रिका सामयिक सरस्वती के ताजा अंक में कथाकार और पेंटर प्रभु जोशी और कहानीकार भालचंद्र जोशी के बीच का एक विवाद प्रकाशित हुआ है । इस विवाद को लेकर संपादक की एक टिप्पणी है- ‘साहित्य में विवाद का पुराना रिश्ता है । समय समय पर साहित्य की दुनिया में लेखकों के ल...

0
इन दिनों हिंदी में साहित्यिक विवादों की जगह व्यक्तिगत राग-द्वेष ने ले ली है — अनंत विजय @anantvijay
तेरी कमीज़ मेरी कमीज़ से मैली कैसे ... हिंदी साहित्य में यही होड़ लगी हुई है, शब्दवीर साहित्य से इतर सब कुछ कर रहे हैं. एक किस्सा है — एक महिला ने ख़ुदा से दुआ मांगी "अल्लाह मुझे संतान देगा तो मैं मस्जिद में ढोल बजवाऊँगी". महिला को संतान हुई और वह मौलवी के पास अपनी अरज...

0
उन्नीस सौ सत्तावन में नयी कहानी पर टिप्पणी करते हुए हरिशंकर परसाईं ने कहा था- ‘जहां तक कहानी के शिल्प और तंत्र का प्रश्न है, यह समान्यत: स्वीकार किया जाता है कि हम आगे बढ़े हैं । नये जीवन की विविधताओं को, मार्मिक प्रसंगों को, सूक्ष्मतम समस्याओं को चित्रित करने के ल...

0
पिछले दिनों जयपुर लिटरेचर फेस्टिबल में आशीष नंदी के एक बयान से शुरू हुआ विवाद मीडिया में दूध में बाल की तरह उफना जिससे जरा सी तपन हुई और दुनिया उसी रफतार से चलती रही. इस तरह की घटनाओं का घटित होना हमारे समय में हो रहे आमूल परिवर्तनों के लक्षणों के उभर आने के जैसा ह...

0
पिछले दिनों जयपुर लिटरेचर फेस्टिबल में आशीष नंदी के एक बयान से शुरू हुआ विवाद मीडिया में दूध में उबाल की तरह उफना जिससे जरा सी तपन हुई और दुनिया उसी रफतार से चलती रही. इस तरह की घटनाओं का घटित होना हमारे समय में हो रहे आमूल परिवर्तनों के लक्षणों के उभर आने के जैसा...

0
यहां आप 'रमाकान्त-श्रीवास्तव कथा पुरस्कार' के बारे में, निर्णायक दिनेश खन्ना का वक्तव्य, युवा कथाकार ओमा शर्मा की कहानी मेमना और उनका आत्मकथ्य पढ़ चुके हैं. अब इस प्रसंग की अंतिम कड़ी के तौर पर कथाकार-चित्रकार प्रभु जोशी का वक्तव्य पढ़िए जो उन्होंने पुर...

0
इधर हिंदी साहित्य जगत में बात-बात में बहसें क्या उठ खड़ी हो जा रही हैं, मानो पानी को उबाल कर गाढ़ा करने का खेल चल रहा हो. पत्रिकाओं के चूल्हे पर जहां पतीलियों में पानी चढ़ाया जाता है, वहां इंटरनेट का पंखा आग को हवा देने की ड्यूटी संभाल लेता है. सब जानते हैं पान...

0
छायांकन - हरबीर &nbs...