इन बातों को आज इतने महीने पहले ही ‘ड्राफ़्ट’ करके ‘शेड्यूल’ कर रहा हूँ। तीन चार सपने तरतीब से लगा दिये हैं। के आगे वाले दिनों में कहीं इसे लगाना रह न जाये। भूलने वाला प्राणी नहीं हूँ, फ़िर भी.. मन कर रहा है। तारीख़ वही है जब हम सच में चारबाग़ स्टेशन के लिए चल दिये होंग...
पोस्ट लेवल : "बस की सवारी"

0
धीरे-धीरे अँधेरा बढ़ रहा है। ठंड भी नीचे उतर आई है। सूरज ढले कई पहर बीत गए हो जैसे। या ऐसी कोई चीज़ उस जगह ने कभी देखी ही नहीं है। पता नहीं यह क्या था। बस अँधेरे की तरह दिख रहा है। हमें जल्द ही वहाँ से चल पड़ना होगा। ताकि आगे कोई होटल मिल सके। पर दिक्कत है अभी तक पीछे...

0
नींद आ रही है पर लेटुंगा नहीं। क्योंकि पता है लेटने पर भी वह आने वाली नहीं है। इधर वह ऐसे ही परेशान करने लगी है। करवट-करवट बस उबासी आती है नींद नहीं। और फ़िर जब यादें खुली आँखों से आस पास तैर रही हों तो सोने की क्या ज़रूरत। ऐसे ही कल हम मनाली थे। माल रोड घूम रहे थे।...