बह्र:- 2122 1212 22प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम,जान ले लो न पर सताओ तुम।पास आ के जरा सा बैठो तो,फिर न चाहे गलेे लगाओ तुम।चोट खाई बहुत जमाने से,कम से कम आँख मत चुराओ तुम।इल्तिज़ा आख़िरी ये जानेमन,अब तो उजड़ा चमन बसाओ तुम।खुद की नज़रों से खुद ही गिर कर के,आग न...
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बह्र:- 2122 1212 22दिल में कैसी ये बे-क़रारी है,शायद_उन की ही इंतिज़ारी है।इश्क़ में जो मज़ा वो और कहाँ,इस नशे की अजब खुमारी है।आज भर पेट, कल तो फिर फाका,हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।दौर आतंक, लूट का ऐसा,साँस लेना भी इसमें भारी है।जिससे मतलब उसी से बस नाता,आज क...

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बह्र:- 2122 1212 22इश्क़ की मेरी इब्तिदा है वो,हमनवा और दिलरुबा है वो।मेरा दिल तो है एक दरवाज़ा,हर किसी के लिए खुला है वो।खुद में खुद को ही ढूंढ़ता जो बशर,पारसा वो नहीं तो क्या है वो।जब से खुद को ख़ुदा समझने लगा,अपनी धुन में रमा हुआ है वो।बाँध पट्टी ज...

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बह्र:- 2122 1212 22/112आज फिर इश्तिहार किसका है?शौक़ ये बार बार किसका है?उनके शायद मचल रहे अरमाँ,दिल में उनके बुखार किसका है?करके घायल छिपा कहाँ क़ातिल,दिल के तीर_आर पार किसका है?आँख जो आज तक दिखाता रहा,उसके बिन और वार किसका है?दिल की सुन सुन ख़ता बहुत खाई...