कल ही पोता लौटा है दिल्ली से घूम कर. अपने कुछ दोस्तों के साथ गया था दो दिन के लिए.सुना उपर अपने कमरे में बैठा है अनशन पर कि यदि मोटर साईकिल खरीद कर न दी गई तो खाना नहीं खायेगा. जब तक मोटर साईकिल लाने का पक्का वादा नहीं हो जाता, अनशन जारी रहेगा.माँ समझा कर थक गई कि...
पोस्ट लेवल : "ब्लॉग"

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हादसे स्तब्ध हैं, ... हमने ऐसा तो नहीं चाहा था !घर-घर दहशत में है,एक एक सांस में रुकावट सी है,दबे स्वर,ऊंचे स्वर में दादी,नानी कह रही हैं,"अच्छा था जो ड्योढ़ी के अंदर ही हमारी दुनिया थी"नई पीढ़ी आवेश में पूछ रही,"क्या सुरक्षित थी?"बुदबुदा रही है पुरानी पीढ़ी,"ना,...

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मैं वृक्ष,वर्षों से खड़ा हूँजाने कितने मौसम देखे हैं मैंने,न जाने कितने अनकहे दृश्यों का,मौन साक्षी हूँ मैं !पंछियों का रुदन सुना है,बारिश में अपनी पत्तियों का नृत्य देखा है,आकाश से मेरी अच्छी दोस्ती रही है,क्योंकि धरती से जुड़ा रहा हूँ मैं ।आज मैंने अपने शरीर से वस्...

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अगर आपके पास घोड़ा है तो जाहिर सी बात है चाबुक तो होगी ही. अब वो चाबुक हैसियत के मुताबिक बाजार से खरीदी गई हो या पतली सी लकड़ी के सामने सूत की डोरी बाँधकर घर में बनाई गई हो या पेड़ की डंगाल तोड़ कर पत्तियाँ हटाकर यूँ ही बना ली गई हो. भले ही किसी भी तरह से हासिल की गई ह...

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पहले पूरे घर मेंढेर सारे कैलेंडर टँगे होते थे ।भगवान जी के बड़े बड़े कैलेंडर,हीरो हीरोइन के,प्राकृतिक दृश्य वाले, ...साइड टेबल पर छोटा सा कैलेंडररईसी रहन सहन की तरहगिने चुने घरों में ही होते थेफ्रिज और रेडियोग्राम की तरह !तब कैलेंडर मांग भी लिए जाते थे,नहीं मिलते तो...

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सादर अभिवादन..आज का अंक फिर एक बन्द ब्लॉग सेहकीकत मे इस ब्लॉग में 2017 के बाद से कोई नई प्रस्तुति नहींबन्द नहीं कहना चाहिएक्यूँकि इस ब्लॉग की लेखिकाफेसबुक में सक्रिय हैब्लॉग लेखिका हैं नईदिल्ली निवासी सखी नीलिमा शर्मा जीतो चलिए..इस बागीचे के चुनिन्दा पुष्...

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दुआ, प्रार्थना, शुभकामना, मंगलकामना, बेस्ट विशेस आदि सब एक ही चीज के अलग अलग नाम हैं और हमारे देश में हर बंदे के पास बहुतायत में उपलब्ध. फिर चाहे आप स्कूल में प्रवेश लेने जा रहे हों, परीक्षा देने जा रहे हों, परीक्षा का परिणाम देखने जा रहे हों, बीमार हों, खुश हों, इ...

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मृत्यु अंतिम विकल्प है जीवन काया जीवन का दूसरा अध्याय है ?जहाँ हम सही मायनों मेंआत्मा के साथ चलते हैंया फिर अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति कारहस्यात्मक खेल खेलते हैं ?!औघड़,तांत्रिक शव घाट पर हीखुद को साधते हैं... आखिर क्यों !जानवरों की तरह मांस भक्षण करते हैंमदिरा का सेव...

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बचपन से ही मैं बाँये हाथ से लिखता था. लिखने से पहले ही खाना खाना सीख गया था, और खाता भी बांये हाथ से ही था. ऐसा भी नहीं था कि मुझे खाना और लिखना सिखाया ही बाँये हाथ से गया हो लेकिन बस जाने क्यूँ, मैं यह दोनों काम ही बांये हाथ से करता.पहले पहल सब हँसते. फिर डाँट पड़न...
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21वीं सदी टेक्नॉलाजी की है। आज बच्चे कलम बाद में पकड़ते हैं , मोबाइल, टेलीवीजिन, कम्प्यूटर व लैपटॉप पर हाथ पहले से ही फिराने लगते हैं। ऐसे में उनका सृजनात्मक दायरा भी बढ़ रहा है। ऐसी ही एक नन्ही प्रतिभा हैं- अक्षिता (पाखी) यादव। 12 वर्षीया अक्षिता न सिर्फ नन्ही...