ब्लॉगसेतु

राजीव तनेजा
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नोट:होली के अवसर पर इन चित्रों के महज़ हास्य के लिए बनाया गया है..अगर किसी भी ब्लॉगर मित्र को अपने फोटो पर आपत्ति हो तो सहर्ष ही क्षमा मांगते हुए उसके चित्र को हटा दिया जाएगा                     &...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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  ब्लॉग जगत की हलचल से अलग रहते हुए अपनी सरकारी नौकरी बजाने में ही हलकान हो जाने पर मैने मन को समझा लिया कि इसमें बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है। ऑफ़िस से लौटकर घर आने के बाद शर्ट की बटन खोलने के पहले कम्प्यूटर का बटन ऑन करने की आदत पड़ गयी थी। उसे बड़े जतन स...
राजीव तनेजा
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अरे काहे का मीट?...किसका मीट?...सब बकवास इतना झूठ?...तौबा...तौबा...कुछ तो उपरवाले के कहर से डरो...कुछ तो उसके ताप से घबराओ...जिसे देखो वही जो मन में आए बके चले जा रहा है...मीट...मीट...मीट अरे!...काहे का मीट?...किसका मीट?...  किसका?...किसका कत्ल हुआ था?...ज़रा...
girish billore
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सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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बुरा हो इस ब्लॉगजगत का जो चैन से आलस्य भी नहीं करने देता। एक स्वघोषित आलसी महाराज तुरत-फुरत कविता रचने और ठेलने की फैक्ट्री लगा रखे हैं। इधर-उधर झाँकते हुए टिपियाते रह्ते हैं। रहस्यमय प्रश्न उछालते हैं और वहीं से कोई सूत्र निकालकर कविता का एक नया प्रयोग ठेल देते है...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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  इतवार का बिहान सिर तक रजाई लिए तान घर में की खटपट से बन्द किए कान … आंगन में धूप रही नाच छोटू ककहरा किताब रहा बाँच फिर भी न आलस पर आने दी आँच … कुंजीपट खूँटी पर टांग धत्‌ कुर्सी कर्मठता का स्वांग दफ़्तर में अनसुनी है छुट्टी की मांग … कू...
girish billore
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girish billore
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सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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  मन के भीतर उमड़-घुमड़ कुछ बादल सघन ललक बरसन पर पछुआ की धार से छितर-बितर कुछ टुकड़ा इधर कुछ खाँड़ उधर   घर के भीतर की खनखन कलरव बच्चों का कि अनबन घरनी के मन में कुछ तड़पन फिर ठनगन उठता नहीं स्वर गगन बस होती भनभन मन ही मन घरवाला अपने में मगन...
girish billore
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