अरुण कुमार निगम 201 मान जाओ प्रिये..... अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) फेसबुक ट्विटर गूगल 15 जनवरी 2013 11:13 अपराह्न रिपोर्ट स्पैम आंकड़े साहित्य मान जाओ प्रिये..... है मिलन की घड़ी मत करो हड़बड़ी | इतनी जल्दी तुम्हें जाने की क्या पड़ी | पास बैठो अजी दूर क्यों हो खड़ी | देख लूँ मैं जरा रूप की फुलझड़ी | छोड़ दो - छोड़ दो आँसुओं की झड़ी | हँसके बिखरा भी दो मोतियों  ... पोस्ट लेवल : मान जाओ प्रिये.....