पोस्ट लेवल : "मौत"

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स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं ) प्रीति कुसुम26-05-2020 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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स्वामिनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यरन जनता बच पाएगी, न कारोबारअगर यों ही जारी रहा लॉकडाउनस्वामिनॉमिक्स===========================कोरोना के दौरान शटडाउन का दुनिया भर में सबसे बड़ा सबक यह रहा कि इस दौरान कोरोना वायरस से जितने लोग मारे गए, लगभग उतने ही लॉकडाउन के कारण अपनी...

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सबकुछ मिट्टी से पैदा होकर फिर उसी में मिल जाता हैराजा हो या रंक सबका अंत एक-सा होता है।उसी का जीवन सार्थक है जो गलतियों से फायदा उठाता हैहमेशा जीते रहेंगे सोचने वालों का जीवन बेकार हो जाता हैसमय किसी अस्तबल में खूंटे से बंधे घोड़े जैसा नहीं रहता हैप्रतिकूल समय में अ...

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17 मार्च तक अदालत में कामकाज सामान्य था। 18 को जब अदालत गया तो हाईकोर्ट का हुकम आ चुका था, केवल अर्जेंट काम होंगे। अदालत परिसर को सेनीटाइज करने और हर अदालत में सेनीटाइजर और हाथ धोने को साबुन का इन्तजाम करने को कहा गया था, वो नदारद था। काम न होने से हम मध्यान्ह की च...

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दुखते हुए जख्मों पर हवा कौन करे,इस हाल में जीने की दुआ कौन करे,बीमार है जब खुद ही हकीमाने वतन,तेरे इन मरीजों की दवा कौन करे ... किस शायर की पंक्तियाँ हैं ये, पता नहीं लग रहा है। पर जिसने भी लिखी होंगी, जरूर वह जख्मी भी रहा होगा और मुल्क के हालात से परेशान भी।...

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बरसों पहलेएक खेल खेला करते थे हम लोगविष- अमृत नाम था शायद...!!भागते - भागते जब कोईछू लेता था किसी कोतो विष कहा जाता थाऔर वो एक टक पुतले के जैसेरुक जाता था....ना हिलता था ना कुछ बोल पाता था...फिर जब कोई और उसे छू लेता तोअमृत बन जाता थाखेलता था पहले के जैसेभागता था.....

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http://epaper.navbharattimes.com/details/94380-77169-1.htmlआजादी की चाह लिए खामोश हो गईं रत्ती जिन्नाhttps://www.facebook.com/photo.php?fbid=10157851180791380&set=a.10151707986006380&type=3नाइश हसन &nbs...

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साधक जी गहरे सदमे में थे।उनके प्रिय लेखक का निधन हो गया था और यह ख़बर उन्हें पूरे बत्तीस मिनट की देरी से मिली थी।अब तक तो सोशल मीडिया में कई लोग बाज़ी मार ले गए होंगे।यह उनकी अपूरणीय क्षति थी।फिर भी उन्होंने ख़ुद को संभाला।ऐसा करना ज़रूरी था नहीं तो क्षति और व्यापक...

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ज़िम्मेदारी के अभाव का घूँट, अस्पताल का मुख्यद्वार पी रहा, व्यवस्था के नाम पर, दम तोड़तीं टूटीं खिड़कियाँ, दास्तां अपनी सुना रहीं, विवशता दर्शाती चौखट, दरवाज़े को हाँक रही, ख़राब उपकरणों की सजावट, ...