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jaikrishnarai tushar
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 चित्र साभार गूगलएक ग़ज़ल-मौसम अच्छा धूप गुलाबीमौसम अच्छा धूप गुलाबी क्या दूँ इसको नामराधा कृष्ण कहूँ या इसको लिख दूँ सीतारामचन्दन की खुशबू में लिपटे दीपक यादों केरामचरितमानस को लेकर बैठी दूल्हन शामभींगे पंखों वाली तितली लिपटी फूलों सेमौसम आया फूल तोड़ने करके चार...
jaikrishnarai tushar
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 चित्र साभार गूगलएक ताज़ा ग़ज़ल-सर्द मौसम में खिली धूप गुलाबों की तरहसर्द मौसम में खिली धूप गुलाबों की तरहजाम खुशबू का लिए शाम शराबों की तरहछोड़कर आसमां महताब चले आओ कभीतुझको सिरहाने सजा दूँगा किताबों की तरहजिनकी तस्वीर तसव्वुर में लिए बैठे रहेवो मुझे भूल गए रात क...
jaikrishnarai tushar
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 चित्र साभार गूगलएक ग़ज़ल-मौसम सारे अच्छे थेधूप,हवाएँ, बादल, बिजली,चाँद-सितारे अच्छे थेजब तक उसके साथ सफ़र था मौसम सारे अच्छे थेमन्द मन्द मुस्कान किसी की माँझी भी गुलज़ार सा थाफूलों की टोकरियाँ लादे सभी शिकारे अच्छे थेपक्का घर हैं आँखें सुंदर पर आँखों में नींद नही...
jaikrishnarai tushar
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चित्र साभार गूगलएक ग़ज़ल-चटख मौसम,किताबें,फूल चटख मौसम,किताबें,फूल,कुछ किस्सा,कहानी हैमोहब्बत भी किसी बहते हुए दरिया का पानी हैनहीं सुनती ,नहीं कुछ बोलती ये चाँदनी गूँगीमगर जूड़े में बैठी गूँथकर ये रात रानी हैसफ़र में थक के मैं पीपल के नीचे लेट जाता हूँदिए कि लौ म...
jaikrishnarai tushar
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 चित्र साभार गूगलएक ग़ज़ल-कितना अच्छा मौसम यार पुराना थाकितना अच्छा मौसम यार पुराना थाघर- घर में सिलोन रेडियो गाना थाखुशबू के ख़त होठों के हस्ताक्षर थेप्रेम की आँखों में गोकुल,बरसाना थाकौन अकेला घर में बैठा रोता थासुख-दुःख में हर घर में आना-जाना थारिश्तों में खटप...
sangeeta swarup
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 प्रकृति तो बदलती है निश्चित समय पर अपने मौसम , होते हैं निश्चित दिन - महीने ।लेकिन इंसान के-मन का मौसम कब बदल जाये पता ही नहीं चलता ।चेहरा ही बता देता है कि मौसम कुछ बदला सा है ।जब चढ़ता है ताप भावनाओं का तो  च...
jaikrishnarai tushar
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 चित्र -साभार गूगल एक ग़ज़ल -रंग- पिचकारी लिए मौसम खड़ा ख़त 'बिहारी' लिख रहा होकर विकल ऐ मेरे 'जयसिंह 'मोहब्बत से निकल फिक्र है विद्वत सभा दरबार को कब तू छोड़ेगा नई रानी महल अब प्रजा का हाल वह कैसे सुने इत्र विस्तर पर बगीचे में कं...
jaikrishnarai tushar
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 चित्र -साभार गूगल  ग़ज़ल -1मौसम के साथ धूप के नख़रे भी कम न थे 1मौसम के साथ धूप के नख़रे भी कम न थे यादें तुम्हारी साथ थीं तन्हा भी हम न थे बजरे पे पनियों का नज़ारा हसीन था महफ़िल में उसके साथ में होकर भी हम न थे राजा हो ,कोई रंक या शा...
jaikrishnarai tushar
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 चित्र -साभार गूगल एक ताजा ग़ज़ल-मौसम का सच छिपाती हैं शीशे की खिड़कियाँमौसम का सच छिपाती हैं शीशे की खिड़कियाँहँसकर के सारे ग़म को भुलाती हैं लड़कियाँखतरा सभी को रहता है यूँ अपने आस-पास जब भी कटी उँगलियाँ, तो थीं अपनी खुरपियाँमिलती है गालियाँ उन्हें ईनाम कम मि...
jaikrishnarai tushar
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  चित्र -साभार गूगल रदीफ़ काफ़िए और मुश्किल विषय पर ग़ज़ल कहना /लिखना कठिन था इसलिए आँख को मजबूरन रखना पड़ा |यह ग़ज़ल देश के शीर्ष नेतृत्व और तीनों सेनाओं के साथ सभी तरह के सुरक्षा बलों को समर्पित है ,जिनके अदम्य साहस और बलिदान से यह देश और हम सभी सुरक्षित...