नया वर्ष नई उम्मीद लेकर आया है। वर्ष के पहले ही दिन देश में कोरोना वैक्सीन के आपात उपयोग को मंजूरी मिल गई है। कोरोना महामारी के भीषण संकट से जूझ रहे देशवासियों के मनोबल को बढ़ाने वाला ये सुखद समाचार है। कोरोना की वैक्सीन ने जो उम्मीद जगाई है उससे देशभर के कलाकार भी...
पोस्ट लेवल : "राजस्थान"

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परदेशाँ जाय बैठ्या बालमजी म्हारी हेली!ओळ्यूँ आवै सारी रात।हिया मँ उमड़ै काली कलायण म्हारी हेली!बरसै नैणां स्यूँ बरसात।।मनड़ा रो मोर करै पिऊ पिऊ म्हारी हेली!पिया मेघा ने दे पुकार।सूखी पड्योरी बेल सींचो ये म्हारी हेली!कर नेहाँ रे मेह री फुहार।।आखा तीजड़ गई सावण भी सूखो...

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राजस्थानी मुक्तिका*आसमान में अटक्या सूरजगेला भूला भटक्या सूरज*संसद भीतर बैठ कागलो काँव-काँव सुन थकग्या सूरज कोरोना ने रस्ता छेंका बदरी पीछे छिपग्या सूरज भरी दफेरी बैठ हाँफ़ र् यो बिना मजूरी चुकग्या सूरज धूली चंदण&n...

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राजस्थानी मुक्तिका संजीव *घाघरियो घुमकाय मरवण घणी सुहाय *गोरा-गोरा गाल मरते दम मुसकाय *नैणा फोटू खैंच हिरदै लई मँढाय *तारां छाई रात जाग-जगा भरमाय *जनम-जनम रै संग ऐसो लाड़ लड़ाय *देवी-देव मनाय मरियो सा...

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लेख :राजस्थानी पर्व : संस्कृति और साहित्य- बुलाकी शर्मा*लेखक परिचय जन्म - १ मई, १९५७, बीकानेर ।राजस्थानी और हिंदी में चार दशकों से अधिक समय से लेखन । ३० के लगभग पुस्तकें प्रकाशित ।व्यंग्यकार, कहानीकार, स्तम्भलेखक के रूप में खास पहचान । दैनिक भास्कर...

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रासोआदिकाल के रासो' ग्रन्थों में वर्णित वीर गाथायें प्रमुख हैं। "रास' या "रासक' का अर्थ लास्य है जो नृत्य का एक भेद है। इसी अर्थ भेद के आधार पर गीत-नृत्यपरक रचनायें "रास' कही जाती हैं। "रासो' या "रासउ' में विभिन्न प्रकार के अडिल्ल, ढूसा, छप्पर, कुण्डलिया...

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राजस्थानी काव्य पीड़ पच्चीसी राजेंद्र स्वर्णकार*रजथानी रै राज में, गुणियां रो ओ मोल!हंस डुसड़का भर मरै, कागा करै किलोळ!!रजथानी रै खेत नैं, चरै बजारू सांड!खेत धणी पच पच मरै, मौज करै सठ भांड!!कांसो किण रो… कुण भखै; ज़बर मची रे लूंट!चूंग रहया रजथान री गाय; सांडिया ऊंठ!...

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राजस्थानी काव्य हास्यप्रदीप चावला * दूध दही ने चाय चाटगी, फूट चाटगी भायाँ ने ।।इंटरनेट डाक ने चरगी, भैंस्या चरगी गायाँ ने ।।टेलीफोन मोबाईल चरग्या, नरसां चरगी दायाँ ने ।।देखो मर्दों फैसन फटको, चरग्यो लोग लुगायाँ ने ।।साड़ी ने सल्वारां खायगी, धोतीने पत...

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राजस्थानी देशभक्ति गीत *धोराँ आळा देस जाग रे, ऊँटाँ आळा देस जाग।छाती पर पैणा पड़्या नाग रे, धोराँ आळा देस जाग ।।धोराँ आळा देस जाग रे….उठ खोल उनींदी आँखड़ल्यां, नैणाँ री मीठी नींद तोड़रे रात नहीं अब दिन ऊग्यो, सपनाँ रो कू़डो मोह छोड़थारी आँख्याँ में नाच रह्या,...

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राजस्थानी मुक्तिका पीर पराईसंजीव *देख न देखी पीर पराई.मोटो वेतन चाट मलाई..इंगरेजी मां गिटपिट करल्यै.हिंदी कोनी करै पढ़ाई..बेसी धन स्यूं मन भरमायो.सूझी कोनी और कमाई..कंसराज नै पटक पछाड्यो.करयो सुदामा सँग मिताई..भेंट नहीं जो भारी ल्यायो.बाके नहीं गुपाल गुसा...