शयोक! तुम्हें पढ़ा जाना अभी शेष है...कहते हैं, पहाड़ी नदियाँ बड़ी शोख़ होती हैं, चंचल होती हैं। लहराना, बल खा-खाकर चलना ऐसा, कि ‘आधी दुनिया’ को भी इन्हीं से यह हुनर सीखना पड़े। पहाड़ी नदियाँ तो बेशक ऐसी ही होती हैं, मगर कभी हिमानियों से अपना रूप और आकार...
पोस्ट लेवल : "लेह-लदाख"

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लोसर : परंपरा और संस्कृति का पर्वलदाख अंचल को उसकी अनूठी संस्कृति और धार्मिक परंपराओं से जाना जाता है। लदाख के बारे में ह्वेनसांग, हेरोडोट्स, नोचुर्स, मेगस्थनीज, प्लीनी और टॉलमी जैसे यात्रियों ने बताया है। इससे लदाख के अतीत का पता चलता है। किसी भी क्षेत्र के अतीत क...

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बलखङ चौक से दीवानों की गली तकआज न जाने क्यों धरती के उस निहायत छोटे-से टुकड़े पर लिखने के लिए कलम उठ गई। धरती का वह टुकड़ा, जो इतना छोटा-सा है, कि कुल जमा दो-सवा दो सौ कदमों से नापा जा सकता है। अगर कोई यह समझ बैठे, कि इन दो सौ-सवा दो सौ कदमों को वह ज्यादा से ज्यादा...

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लदाख का धार्मिक नृत्य- छमहिमालय के उच्चतम शिखरों में फैली बौद्ध धर्म की महायान परंपरा अपनी अनूठी धार्मिक विशिष्टताओं और इन विशेषताओं के साथ मिलकर विकसित हुई अनूठी संस्कृति के कारण युगों-युगों से धर्मभीरुओं को, श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करती रही है। हिमालय...

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लदाख की थङ्का चित्रकलाहिमालय के ऊँचे-ऊँचे पहाड़, आसमान को छूते हुए। पहाड़ों की चोटियों पर चमकती सफेद बर्फ। साफ, धुले हुए जैसे दिखने वाले नीले गगन में तैरते रूई के गोलों जैसे बादलों के झुंड। सूरज की रोशनी में लालिमा से भरी बादलों की टुकड़ियाँ। प्रकृति के इस मनमोहक न...

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कालचक्र का महत्त्वकालचक्र अनुष्ठान का बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा में अपना विशेष स्थान है। भारत की पुरातन पूजा परंपरा में कालचक्र का विशेष महत्त्व रहा है। कालचक्र संस्कृत भाषा का शब्द है। भोट भाषा में इसे दुस-खोर-वङ-छेन कहा जाता है। काल का सरल अर्थ समय होता है और चक...

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प्रकृति और प्रगति की मार झेलते चङ्पा घुमंतूमनाली से लेह का सफ़र तय करते वक्त 5260 मीटर ऊँचे तङलङ ला दर्रे के पहले पङ गाँव पड़ता है। इस गाँव के आगे तङलङ ला की तराई के गाँवों के पास गाड़ियों को देखते ही वहाँ के निवासी गाड़ियों की ओर दौड़ पड़ते हैं और यात्रियों से पान...