क़ुदरती तौर पर कुछ चीज़ें..कुछ बातें...कुछ रिश्ते केवल और केवल ऊपरवाले की मर्ज़ी से ही संतुलित एवं नियंत्रित होते हैं। उनमें चाह कर भी अपनी मर्ज़ी से हम कुछ भी फेरबदल नहीं कर सकते जैसे...जन्म के साथ ही किसी भी परिवार के सभी सदस्यों के बीच, आपस का रिश्ता। हम चाह कर भी अ...
पोस्ट लेवल : "वंदना अवस्थी दुबे"

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‘बातों वाली गली” का कर्ज़ चुकाने का मौक़ा “अटकन चटकन” ने दे दिया, हालाँकि इसमें भी व्यक्तिगत व्यस्तताओं और परेशानियों के कारण महीने भर से ज़्यादा का समय निकल गया। यह उपन्यास लिखा है श्रीमती वंदना अवस्थी दुबे ने और इसके प्रकाशक हैं शिवना प्रकाशन। कुल जमा 88 पृष्ठ...

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बातों वाली गली में टहलते हुए अपने आसपास का माहौल ही नजर आया. जिस तरह से रोज ही जो निश्चित सी दिनचर्या लोगों की दिखाई देती है, कुछ-कुछ वैसी ही बातों वाली गली के लोगों की दिखी. लघुकथा जैसे छोटे कलेवर में विस्तृत फलक दिखाई दिया. वंदना जी अपने बचपन से लेकर अद्यतन लेखकी...

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वंदना अवस्थी दुबे सुनिए ब्लॉग किस्सा कहानी (जिस पर २०११ के बाद से कोई पोस्ट प्रकाशिक नहीं की गई )से एक कहानी - विरुद्ध

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गुनगुनाती धूप और औरतें किरणों से बातें करती हैं गर्मी को आत्मसात करती हैं नहीं देखतीं अपनी दुनिया से परे व्यर्थ की बातों को अपनी सलाइयों पर वह घर बुनती है बुनती जाती है धूप सेंकते हुए …। रश्मि प्रभा&...

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विषय अच्छा है और इस पर का भी उतना ही महत्व है जितना की इसको महसूस कर मन में रखने वालों में - अरे भाई आप भी अपनी सो...