ब्लॉगसेतु

जेन्नी  शबनम
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अब डर नहीं लगता ******* अब डर नहीं लगता!   न हारने को कुछ शेष   न किसी जीत की चाह   फिर किस बात से डरना?   सब याद है   किस-किस ने प्यार किया   किस-किस ने दुत्कारा   किस-किस ने छला ...
 पोस्ट लेवल : व्यथा वक़्त जीवन
रवीन्द्र  सिंह  यादव
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किताब-ए-वक़्त में क्या-क्या और लिखा जाने वाला है किसी को ख़बर नहीं कुछ नक़्शे बदल जाएँगेअगर बचे झुलसने सेचिड़ियों के घोंसलेरहेंगे वहीं के वहींढोएगी मानवता महत्त्वाकाँक्षी मस्तिष्कों की कुंठित अराजकतामनुष्य का भौतिकता मेंजकड़ा जानावक़्त का सच है बुज़ुर्गों की उपेक्षामासूमो...
 पोस्ट लेवल : कविता किताब-ए-वक़्त
रवीन्द्र  सिंह  यादव
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मिटकर मेहंदी को रचते सबने देखा है,उजड़कर मोहब्बत कोरंग लाते देखा है?चमन में बहारों काबस वक़्त थोड़ा है,ख़िज़ाँ ने फिर अपनारुख़ क्यों मोड़ा है?ज़माने के सितम सेन छूटता दामन है,जुदाई से बड़ाभला कोई इम्तिहान है?मज़बूरी के दायरों मेंहसरतें दिन-रात पलीं,मचलती उम्मीदेंकब क़दम...
S.M. MAsoom
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नवाबों के वक़्त का मक़बरा मीर रुस्तम अली खां अभी अच्छी हालत में है | मीर रुस्तम अली खां अफगान जाती के थे और उनका निवास स्थान भदोही था | आप नवाब सआदत  अली खान के समय में जौनपुर बनारस गाज़ीपुर की ज़मींदारी के नाज़िम थे और बाद में इसमें बहराइच ,राठ ,आजमगढ़ इत...
Ravindra Pandey
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बैठ कर कुछ पल मैं सोचूं, वक़्त क्यूँ रुकता नहीं...है अगर धरती से यारी,क्यूँ गगन झुकता नहीं...काश के ऐसा कभी हो,देर तक खुशियाँ मिले...ख़्वाबों की मज़बूत टहनी,में नया कोई ग़ुल खिले...ख़्वाबों की लम्बी डगर है,सिलसिला रुकता नहीं...है अगर धरती से यारी,क्यूँ गगन झुकता नह...
रवीन्द्र  सिंह  यादव
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एक शिल्पी है वक़्त गढ़ता है दिन-रातउकेरता अद्भुत नक़्क़ाशी बिखेरता रंग लिये बहुरँगी कूची  पलछिन पहर हैं पाँखुरियाँ बजतीं सुरीली बाँसुरियाँ सृजित करता है स्याह-उज्ज्वळ इतिहास पल-पल परिवर्तित प्रकृति घड़ियाँ करतीं परिहास&n...
सुमन कपूर
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मैंने ख़यालों में रखी हैं कुछ मोहलतें तुम आकर रख जाना कुछ वक़्त मेरी ख़ातिर !!सु-मन 
 पोस्ट लेवल : ख़याल मोहलत वक़्त
मधुलिका पटेल
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ऐ ज़िन्दगी तू इतना क्यों रुलाती है मुझे ये आँखे है मेरी कोई समंदर या दरिया नहीं --- ~ ---गुज़रे हुए कल मैंने तो हद कर दी वक़्त से ही वक़्त की शिकायत कर दी --- ~ ---मेरी मुस्कान गिरवी रखी थी जहाँवो सौदागर ही न जाने कहाँ...
Nitu  Thakur
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वक़्त की दहलीज़ पररोशनी  सी टिमटिमाई रात के अंधियारे वन में एक खिड़की दी दिखाई चल ख्वाबों के पंख लगाकर नील गगन में उड़ते जायें तारों से रोशन दुनिया में सपनों का एक महल बनायें जहाँ बहे खुशियों का सागर फूलों की खुशबू को स...
 पोस्ट लेवल : वक़्त की दहलीज़ पर
रवीन्द्र  सिंह  यादव
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बीते वक़्त की एक मौज लौट आई, आपकी हथेलियों पर रचीहिना फिर खिलखिलाई। मेरे हाथ पर अपनी हथेली रखकर दिखाए थे हिना  के  ख़ूबसूरत  रंग, बज उठा था ह्रदय में अरमानों का जल तरंग।निगाह दूर-दूर तक गयी, स्वप्न...