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sanjiv verma salil
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सॉनेटदयानन्द•शारद माँ के तप: पूत हे!करी दया आनंद  लुटाया।वेद-ज्ञान-पर्याय दूत हे!मिटा असत्य, सत्य बतलाया।।अंध-भक्ति का खंडन-मंडन। पार्थिव-पूजन को ठुकराया। सत्य-शक्ति का ले अवलंबन।। आडंबर को धूल मिलाया।। राजशक्ति से निर्भय जूझे। लोकशक्त...
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*कुंडलिया वादे कर जो भुला दे, वह खोता विश्वास.ऐसे नेता से नहीं, जनता को कुछ आस.जनता को कुछ आस, स्वार्थ ही वह साधेगा.भूल देश-हित दल का हित ही आराधेगा.सलिल कहे क्यों दल-हित को जनता पर लादे.वह खोता विश्वास भला दे जो कर वादे १९-१२-२०१७ *शिवमय दोहे ल...
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एक षट्पदी *करे न नर पाणिग्रहण, यदि फैला निज हाथ नारी-माँग न पा सके, प्रिय सिंदूरी साज?प्रिय सिंदूरी साज, न सबला त्याग सकेगी 'अबला' 'बला' बने क्या यह वर-दान मँगेंगी ?करता नर स्वीकार, फजीहत से न डरे नारी कन्यादान, न दे- वरदान नर करे ***http://divyanarmada.blogspot.i...
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मुक्तक-पंचतत्व तन माटी उपजा, माटी में मिल जाना हैरूप और छवि मन को बहलाने का हसीं बहाना है रुचा आपको धन्य हुआ, पाकर आशीष मिला संबल है सौभाग्य आपके दिल में पाया अगर ठिकाना है *सलिल-लहर से रश्मि मिले तो, झिलमिल हो जीवन नदियारश्मि न हो तम छाये दस-दिश, बंजर हो जग की बग...
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षट्पदी : निर्झर - नदी निर्झर - नदी न एक से, बिलकुल भिन्न स्वभाव इसमें चंचलता अधिक, उसमें है ठहरावउसमें है ठहराव, तभी पूजी जाती है चंचलता जीवन में, नए रंग लाती है कहे 'सलिल' बहते चल, हो न किसी पर निर्भर रुके न कविता-क्रम, नदिया हो या हो निर्झरhttp://divyanarmada.blo...
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दोहा नेह नर्मदा कलम बन, लिखे नया इतिहासप्राची तम का अन्त कर, देती रहे उजास*प्राची पर आभा दिखी, हुआ तिमिर का अन्तअन्तर्मन जागृत करें, कंत बन सकें संत*हास्य षट्पदीसंजीव*फिक्र न ज्यादा कीजिए, आसमान पर भावभेज उसे बाजार दें, जिसको आता तावजिसको आता ताव, शान्त वह हो...
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दोहा सलिला:*रमा रमा में मन रहा, किसको याद रमेश?छोड़ विष्णु श्री लक्ष्मी, पुजतीं संग गणेश*हास्य षट्पदी:*ब्रह्मा-विष्णु-सदाशिव को जप, पी ब्रांडी-व्हिस्की-शैम्पेन,रम पी राम-राम जप प्यारे, भाँग छान ले भोले मैन।चिलम धतूरा चंचल चित ले, चिन्मय से साक्षात् करे-चकित-भ्रमित य...
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sanjiv verma salil
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एक षट्पदी- संजीव 'सलिल'*जिन्हें हमारी फ़िक्र, उन्हें हम रहे रुलाते.रोये उनके लिए, न जिनके मन हम भाते..करते उनकी फ़िक्र, न जिनको फ़िक्र हमारी-है अजीब, पर सत्य समझ-स्वीकार न पाते..'सलिल' समझ सच को, बदलें हम खुद को फ़ौरन.कभी नहीं से देर भली, कहते विद्वज्जन..**************...
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sanjiv verma salil
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षट्पदीज्योति में आकर पतंगा जल मरेदोष क्या है ज्योति का?, वह क्यों डरे?ज्योति को तूफां बुझा दे तो भी क्या?आखिरी दम तक तिमिर को वह हरेइसलिए जग ज्योति का वंदन करेहुए ज्योतित आप जल, मानव खरे*३-७-२०१६http://divyanarmada.blogspot.in/
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sanjiv verma salil
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षट्पदी लाल लाल गाल पीला माथ ठोड़ी नीली है।नायिका की नाक चना दाल की पकौड़ी है।श्वेत केश श्याम हुए, छैला बदनाम हुएसाठवाली लग रही, ज्यों सोलह की छोरी है।छेड़ रही सखी संग, नायक हुआ है तंगदांव-पेंच दिखा, रिझा रही, बनी भोली है।६-३-२०१८
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