कभी-कभी हम नहीं जानते हम क्यों डूब रहे हैं। बस हम डूबना जानते हैं। आहिस्ते से इस पते पर रुक गयी एक नज़र उन सारे दिनों में पीछे ले जाने के लिए काफ़ी होती होगी, जब वह मुझ इस तरह ‘नॉन सीरियस’ से दिखने वाले लड़के में दिख जाने वाली सारी खूबियों को किन्हीं और अर्थों में बदल...
पोस्ट लेवल : "सपनों की भी एक दुनिया"

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मुझे नहीं पता लोग कैसे लिखते हैं। पर जितना ख़ुद को जानता हूँ, यह लिखना किसी के लिए भी कभी आसान काम नहीं रहा। हम क्यों लिख रहे हैं(?) से शुरू हुए सवाल, कहीं भी थमते नहीं हैं। उनका सिलसिला लगातार चलता रहता है। पर एक बात है, जो इस सवाल का एक ज़वाब हो सकती है। वह यह कि ह...

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तीसरी मंज़िल। सबसे ऊपर। इसके ऊपर आसमान। आसमान में तारे। अँधेरे का इंतज़ार करते। इंतज़ार चीलों के नीचे आने तक। वह वहाँ तब नहीं देख पाती, चमगादड़ों की तरह। इन्हे आँख नहीं होती देखने के लिए। वह तब भी नहीं छू जाते कभी किसी पत्ते को भी। हरे-हरे पत्ते। तुम्हारे गाल की तरह म...

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मैं लिखना चाहता हूँ वह शब्द, जो आज से पहले कभी किसी ने नहीं लिखे हों। वह एहसास जो किसी ने न महसूस किए हों। कहीं से भी ढूँढ़ना पड़े, उन्हे खोजकर ले आऊँगा। उन्हें ढूँढ़ने में कितना भी वक़्त बीत जाए, पर वह मिल जाएँ, एकबार। कभी मन करता है, बस ऐसे ही उनकी तरह गुम होते रहना...

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देखते-देखते पाँच साल बीत गए। जैसे अभी कल ही की तो बात है। लेकिन जैसे अगले ही पल लगता है, यह पिछली पंक्ति और उससे पिछली पंक्ति कितनी झूठ है। सरासर झूठ। पाँच साल। कितना बड़ा वक़्त होता है। हमारी ज़िंदगी के वह साल, जब हम जोश से भरे हुए किसी भी सपने को देख लेने की ज़िद से...

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खिड़की के बाहर बारिश की बूँदें लगातार छत पर गिर रही हैं। छत की फ़र्श पर नयी बूँद आते ही पुरानी बूँद अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में लग जाती है। उन सबको पता है, जब बौछार तेज़ हो जाएँगी तब इस संघर्ष का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। मौसम इतना पानी गिरने के बाद भी ठंडा न...

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1. खाली पन्ने डायरी। आखिरी पन्ना। तारीख़ चौबीस अप्रैल। इसके बाद के सारे पन्ने खाली। बिलकुल सफ़ेद। आज कितने दिन हो गए? अभी गिने नहीं। पर तीन दिन बाद पूरा महिना हो जाएगा। कहीं कुछ नहीं लिखा। ऐसा कैसे हो गया। पता नहीं। बस लगता है, जैसे दिनों को रात के पहिये लग गए हों। स...

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मेरे बगल मेज़ पर दो कागज़ के टुकड़े रखे हुए हैं और मन में कई सारे ख़त। मन इस मौसम में कहीं खोया-खोया सा कहीं गुम हो गया। धूप इतनी नहीं है, पर आँखें जादा दूर तक नहीं देख पा रहीं। उनके नीचे काले घेरे किसी बात पर अरझे रहने के बाद की याद की तरह वहीं रुके रह गए। रातें हैं,...

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हम सब सपनों में रहने वाले लोग हैं। सपने देखते हैं। और चुप सो रहते हैं। उनमें कहीं कोई दीमक घुसने नहीं देते। बक्से के सबसे नीचे वाली तरी में छिपाये रहते हैं। कहीं कोई देख न ले। उसमें किसी की बेवजह आहट कोई खलल न डाल दे। सब वैसा का वैसा बना रहे जैसे सपनों में देखा है।...

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मैं एक कहानी लिखना चाहता हूँ। पता नहीं यह कितने साल पहले मेरे मन में आई बात है। यह कहानी सात आठ साल से मेरे अंदर ही अंदर खुद को बुन रही है। वह कभी बाहर नहीं आ सकी। उसे कभी लिख नहीं सका। मुझे लगने लगा कहानी लिखने का हुनर मुझमें नहीं है। मैं, जिसे कहानी कहते हैं, उसे...