ब्लॉगसेतु

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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डैडी - बेटा, कबतक सोते रहोगे? उठो, आठ बजने वाले हैं...बेटा - जगा तो हूँ डैडी...!डैडी - ऐसे जगने का क्या फ़ायदा? बिस्तर पर आँख मूँदे पड़े हुए हो।मम्मी - देखिए, साहबजादे एक आँख खोलकर मुस्कराये और फ़िर करवट बदलकर सो गये।डैडी - हाँ जी देखो न, इन दोनों की आदत बिगड़ गयी है।...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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एक अंग्रेजी व्हाट्सएप सन्देश से प्रेरित ताज़ी रचना यही समय है आँखें खोलोजब इस दुनिया से चल दूंगा, तुम रोओगे नहीं सुनूंगा व्यर्थ तुम्हारे आँसू होंगे, तब उनको ना पोछ सकूंगा बेहतर है तुम अभी यहीं पर मेरी खातिर जी भर रो...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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टाइम्स ऑफ़ इंडिया में आध्यात्मिक और धार्मिक संदर्भों पर रोचक आलेख प्रकाशित करने वाला नियमित स्तंभ स्पीकिंग ट्री अब ऑनलाइन उपलब्ध है और इसका हिंदी संस्करण भी आ गया है, जिसमें अनेक बार ज्योतिष और शास्त्र के नाम पर अंधविश्वास और टोना-टोटका वाली सामग्री भी दिख जाती है।...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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रायबरेली के स्थानीय शायरों की संगत में पड़कर मैंने जो मासिक तरही नशिस्त पकड़ी थी उसमें सरकारी कामों की व्यस्तता के कारण व्यतिक्रम होता रहता है। इस बार भी यह नशिस्त छूटने ही वाली थी लेकिन मैंने गिरते पड़ते इसमें दाखिला ले ही लिया। इलाहाबाद से भागकर रायबरेली आया। इसबार...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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बचपन में पंडित जी से विद्यार्थी के इन पाँच लक्षणों के बारे में सुना था काकचेष्टा,वकोध्यानं ,श्वाननिद्रा,तथैव च। अल्पाहारी,गृहत्यागी विद्यार्थी पंच सुलक्षणं॥ प्रमेय- विद्यार्थी की उपर्युक्त परिभाषा गलत है, आइए सिद्ध करके देखें- मैंने अपने छात...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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बहुत पुरानी बात है। गाँव में एक विशाल आम का पेड़ था। बहुत घना और छायादार जो गर्मियों में फल से लदा रहता था। उसमें फलने वाले छोटे-छोटे देसी (बिज्जू) आम जो पकने पर पूरी तरह पीले हो जाते थे बहुत मीठे और स्वादिष्ट थे। निरापद इतने कि चाहे जितना खा लो नुकसान नहीं करते थे।...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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सनीदा जब पाँच साल की थी तो उसे एक दिन अपने स्कूल से घर वापस जाने में डर लग रहा था। वह इधर-उधर छिपती रही क्यों कि घर पर उसका बाप बैठा हुआ था जिसके सामने वह जाना नहीं चाहती थी। दर असल उसके अब्बा अली अहमद ने उसकी सगाई का सौदा एक दूसरे कबीले से ‘स्वार’ व्यवस्था के तहद...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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  हे संविधान जी नमस्कार, इकसठ वर्षों के अनुभव से क्या हो पाये कुछ होशियार? ऐ संविधान जी नमस्कार… संप्रभु-समाजवादी-सेकुलर यह लोकतंत्र-जनगण अपना, क्या पूरा कर पाये अब तक देखा जो गाँधी ने सपना? बलिदानी अमर शहीदों ने क्या चाहा थ...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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प्रोफेसर गंगा प्रसाद विमल ने ‘शुक्रवारी’ में रखी बेबाक राय... शुक्रवारी चर्चा आजकल जबर्दस्त फॉर्म में है। माहिर लोग जुटते जा रहे हैं और हम यहाँ बैठे लपक लेते हैं उनके विचार और उद्‌गार। इस विश्वविद्यालय की किसी कक्षा में मैं नहीं गया ; क्योंकि न यहाँ का विद्यार्थ...
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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  वर्धा विश्वविद्यालय शहर से दूर एक वीरान स्थल पर बसाया गया था। पाँच निर्जन शुष्क पहाड़ी टीले इस संस्था को घर बनाने के लिए नसीब हुए। बड़े-बड़े पत्थर और कंटीली झाड़ियाँ चारो ओर पसरी हुई थीं। लेकिन मनुष्य की अदम्य ऊर्जा और निर्माण करने की अनन्य शक्ति के आगे प्रकृति...