आखेट [व्यंग्य संग्रह] – सुशील सिद्धार्थ समाज की बिखरी पड़ी विसंगतियों का बखूबी ‘आखेट‘ ख्यात व्यंग्यकार, आलोचक,संपादक , चर्चित स्तम्भकार सुशील सिद्धार्थ का जन्म 2 जुलाई 1958 को हुआ और 17...
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हाल ही में प्रख्यात लेखक डॉ भगवतशरण उपाध्याय की चर्चित पुस्तक ‘पुरातत्व का रोमांस’ कई वर्षों बाद सामने आई है। इसका पुनर्प्रकाशन किया है भारतीय ज्ञानपीठ ने। इसका प्रथम संस्करण करीब चालीस साल पहले ज्ञानपीठ ने ही 1967में निकाला था। इसके आमुख में खुद डॉ उपाध्याय लिखते...

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संवादों में व्यंग्य की संभावनाओं की तलाश राहुल देव द्वारा संपादित एवं संयोजित पुस्तक ‘आधुनिक व्यंग्य का यथार्थ’ कई मायनों में महत्त्वपूर्ण कही जा सकती है। किसी भी विचार या सम्प्रत्यय पर विमर्शों के आयोजन उसके प्रचार-प्रसार को नवीन सम्भावनाएँ प्रदान करने में सहायक ह...

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मनुष्यकाजन्मसामाजिकपरिवेशमेंहोताहै।इससामाजिकपरिवेशकेअपनेकुछविशिष्टनियमऔरसंस्कारहोतेहैंऔरमनुष्यइनमेंबंधाहोताहै।इससेबाहरजाकर, इससेविलगहोकरव्यक्तिकाअपनाकोईअस्तित्वनहींहोता।अपनेव्यक्तिगतजीवनकोमनुष्यसमष...

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सॉनेटरस*रस गागर रीते फिर फिर भर।तरस न बरस सरस होकर मन।नीरस मत हो, हरष हुलस कर।।कलकल कर निर्झर सम हर जन।।दरस परस कर, उमग-उमगकर।रूपराशि लख, मादक चितवन।रसनिधि अक्षर नटवर-पथ पर।।हो रस लीन श्वास कर मधुबन।।जग रसखान मान, अँजुरी भर।नेह नर्मदा जल पी आत्मन!कर रस पान, पुलक जय...

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कृति चर्चा'चुनिंदा हिंदी गज़लें' संग्रहणीय संकलनआचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'*[कृति विवरण : चुनिंदा हिंदी गज़लें, संपादक डॉ. रोहिताश्व अस्थाना, आकार डिमाई, आवरण सजिल्द बहुरंगी जैकेट सहित, पृष्ठ १८४, मूल्य ५९५/-, प्रकाशक - ज्ञानधारा पब्लिकेशन, २६/५४ गली ११, विश्वास नगर, श...

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नवगीत *बदल गए रे दिन घूरे के कैक्टस दरवाज़े पर शोभित तुलसी चौरा घर से बाहर पिज्जा गटक रहे कान्हा जू माखन से दूरी जग जाहिर गौरैया कौए न बैठते दुर्दिन पनघट-कंगूरे के मत पाने चाहे जो बोलो मत पाकर निज पत्ते खोलो सरकारी संपत्ति बेच दो जनगण-मन में नफरत घोलो लड़ा-भिड़ा खेती...

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- अनूप कुमार पिछले छह-सात दशकों की हिन्दी कविता में डा. रणजीत अपने वैचारिक तेवर और प्रयोगधर्मिता के चलते एक अलग स्थान बनाये हुए हैं। मूलतः मार्क्सवादी होने के बावजूद वे अपने आप को कभी विचारधारा के बने बनाये खाचों में फिट नहीं कर पाये...

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"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता/कहीं ज़मीं नहीं मिलती..कहीं आसमां नहीं मिलता"ज़िन्दगी में हर चीज़ अगर हर बार परफैक्ट तरीके से..एकदम सही से..बिना किसी नुक्स..कमी या कोताही के एक्यूरेट हो..मेरे ख्याल से ऐसा मुमकिन नहीं। बड़े से बड़ा आर्किटेक्ट..शैफ या कोई नामीगिरामी...