ब्लॉगसेतु

Basudeo Agarwal
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(नेताजी)आज तेइस जनवरी है याद नेताजी की कर लें,हिन्द की आज़ाद सैना की हृदय में याद भर लें,खून तुम मुझको अगर दो तो मैं आज़ादी तुम्हें दूँ,इस अमर ललकार को सब हिन्दवासी उर में धर लें।(2122*4)*********तुलसीदास जी की जयंती पर मुक्तक पुष्पलय:- इंसाफ की डगर पेतुलसी की है जयं...
anup sethi
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संजय कुमार श्रीवास्तव  साहित्य कला में  ‘कल’ की कलाकारियांयंत्र का सभ्यता से बहुत पुराना संबंध है। हर युग में नए-नए यंत्र ईजाद हुए हैं। हमारा जीवन उनसे प्रभावित होता रहा है। यंत्र या मशीनें जीवन को आरामदेह बनाने के लिए बनती हैं। जब तक प्रकृति, मशीन औ...
sahitya shilpi
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किसान आंदोलन की आड में [आलेख] – डॉ. सत्यवान सौरभकिसान आंदोलन की आड़ में 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जो कुछ भी हुआ है उसे जायज नहीं करार दिया जा सकता है. कृषि कानूनों के विरोध में गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों का ट्रैक्टर मार्च  हिंसक हो गया. कई...
Krishna Kumar Yadav
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भारतीय संस्कृति में लोकचेतना का बहुत महत्त्व है और लोकगायक इसे सुरों में बाँधकर समाज के विविध पक्षों को सामने लाते हैं। लोकगीतों में बिरहा की अपनी एक समृद्ध परम्परा रही है, जिसे हीरालाल यादव ने नई उँचाइयाँ प्रदान कीं। हीरालाल की गायकी राष्ट्रीयता से ओतप्रोत होने के...
sahitya shilpi
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आज के दौर में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच मीडिया के लिए विश्वसनियता की अहमियत पहले से ज्यादा बढ़ गई है। आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्‍तुनिष्‍ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। इं...
sanjiv verma salil
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सामयिक गीत खाट खड़ी है *बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है मोल बढ़ गया है छोटों का. हल्ला-गुल्ला,शोर-शराबा है बिन पेंदी के लोटों का. *नकली नोट छपे थे जितने पल भर में बेकार हो गए.आम आदमी को डँसने से पहले विषधर क्षार हो गए. ऐसी हवा चली है यारो!उतर गया है मुँह खोटों काबड़े-बड़ों की ख...
 पोस्ट लेवल : सामयिक गीत
ऋता शेखर 'मधु'
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एक सुनहरी रेखा खींचचपल दामिनी नभ के बीचनभ-वसुधा से रिश्ता जोड़सघन कालिमा देती तोड़|ले आती बारिश की धारजिसमें हुलसे घर संसार।समझ न पाती वह यह बातबाढ़ बुलाती अति बरसात।नदियाँ रूप धरें विकरालहहराती सी उनकी चाल।सुरसा सम होतीं बेताबलहरें लिखतीं नई क़िताब।जाने क्या क्या लेत...
 पोस्ट लेवल : कविता मौसम सामयिक
sanjiv verma salil
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सामयिक दोहागीत:क्या सचमुच?संजीव*क्या सचमुच स्वाधीन हम?गहन अंधविश्वास सँगपाखंडों की रीतशासन की मनमानियाँसहें झुका सर मीतस्वार्थ भरी नजदीकियाँसर्वार्थों की मौतहोते हैं परमार्थ नितनेता हाथों फ़ौतसंसद में भी कर रहेजुर्म विहँस संगीन हमक्या सचमुच स्वाधीन हम?*तंत्र लाठियाँ...
sanjiv verma salil
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सामयिक फाग:दिल्ली के रंग*दिल्ली के रंग रँगो गुइयाँ।जुलुस मिलें दिन-रैन, लगें नारे कई बार सुनो गुइयाँ।।जे एन यू में बसो कनैया, उगले ज़हर बचो गुइयाँ।संसद में कालिया कई, चक्कर में नाँय फँसो गुइयाँ।।मम्मी-पप्पू की बलिहारी, माथा ठोंक हँसो गुइयाँ।।छप्पन इंची छाती पंचर, सू...
अजय  कुमार झा
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इस शताब्दी के शुरुआत में ही विश्व सभ्यता किसी अपेक्षित प्राकृतिक आपदा का शिकार न होकर विरंतर निर्बाध अनुसंधान की सनक के दुष्परिणाम से निकले महाविनाश की चपेट में आ गया |  किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि कभी इंसान की करतूत उसके लिए ऐसे हालात पैदा कर देंगे ज...