चलते चलते यूँ ही रूक जाता हूँ मैंकहना चाहूँ जो पर न कह पाता हूँ मैंउल्फतों का समंदर है हिलोरे खा रहाभावनाएँ व्यक्त ना कर पाता हूँ मैंदोस्त दुश्मन बने जिन्दगी की राह परअपने पराये न खोज कर पाता हूँ मैंहार मान लूँ जो यहाँ ये मुनासिब नहींपर स्वयं से ही नहीं जीत पा...