ब्लॉगसेतु

jaikrishnarai tushar
0
 बुरांसएक गीत-नदियों में कंचन मृग सुबहें वो शाम कहाँनदियों मेंकंचन मृग सुबहें वो शाम कहाँ ?धुन्ध कीकिताबों मेंसूरज का नाम कहाँ ?दुःख कीछायाएं हैंपेड़ों के आस-पास,फूल,गंधबासी हैशहरों का मन उदास,सिर थामेबैठा दिनढूंढेगा बाम कहाँ ?अल्मोड़ाकौसानीहाँफती मसूरी है,...
sahitya shilpi
0
सुबह अब होती है... तथा अन्य नाटक [पुस्तक चर्चा] – पंकज सोनी पुस्तक - सुबह अब होती है... तथा अन्य नाटककहानीकार- पंकज सुबीर, नाट्य रूपांतरण- नीरज गोस्वामीप्रकाशन : शिवना प्रकाशन, पी. सी. लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट, सीहोर, मप्र, 466001, दूरभाष- 07562405545 प्रकाश...
jaikrishnarai tushar
0
 एक गीत-नए वर्ष की नई सुबह अब साँसों पर पहरे मत लानानए वर्ष की नई सुबह अब साँसो पर पहरे मत लाना |चुभन सुई कीसह लेंगे परदर्द बहुत गहरे मत लाना ।सारे रंग -गंधफूलों केबच्चों को बाँटना तितलियों ।फिर वसंत केगीत सुनानावंशी लेकर सूनी गलियों,बीता सालभुल...
कुमार मुकुल
0
चांदनी की रहस्यमयी परतों को दरकाती सुबह हो रही है जगो और पाँवों में पहन लो धूल मिट्टी ओस और दौड़ो देखो-स्मृतियों में कोई हरसिंगार अब भी हरा होगा पूरी रात जग कर थक गया होगा संभालो उसेउसकी गंध को संभालो जगो कि कुत्ते सो रहे हैं अभी और पक्षी खोल रहे हैं दिशाओं के द्वा...
 पोस्ट लेवल : सुबह
Roli Dixit
0
तुम्हारा होनारोज़ रोज़ होनाकोई आदत नहींन ही...
YASHVARDHAN SRIVASTAV
0
अच्छा लगता है वो तितलियों काउड़ना।अच्छा लगता हैवो फूलों कामहकना।।अच्छा लगता है वो चिड़ियों का चहकना।अच्छा लगता है वो हवा काबहकना।।अच्छा लगता है वो बारिश काबरसना।अच्छा लगता है वो इन्द्रधनुष काबनना।।अच्छा लगता है वो सुबह की सैर...
Ravindra Pandey
0
ज़िन्दगी के सुहाने सफर में यहाँ,फिसलन भरे मोड़ हालात के।जल रहा है बदन, धूनी की तरह,धुएँ उठ रहे, भीगे जज़्बात के।कसक को पिरोए, वो फिरता रहा,जिया भी कभी, या कि मरता रहा।सुनेगा भी कौन, दुपहरी की व्यथा,सब तलबगार रंगीन दिन-रात के।कोई तो साथ हो, पल भर के लिए,निभा पाया कौन उ...
देवेन्द्र पाण्डेय
0
सुबह उठा तो देखा-एक मच्छर मच्छरदानी के भीतर! मेरा खून पीकर मोटाया हुआ,करिया लाल। तुरत मारने के लिए हाथ उठाया तो ठहर गया। रात भर का साफ़ हाथ सुबह अपने ही खून से गन्दा हो, यह अच्छी बात नहीं। सोचा, उड़ा दूँ। मगर वो खून पीकर इतना भारी हो चूका था क़ि गिरकर बिस्तर पर बैठ गय...
PRABHAT KUMAR
0
*एक सुबह*मैं दिवाली में घर गया और वापसी में जब ट्रेन पकड़ा तो माँ ने काफी गंभीरता से हर बार की तरह कुछ ऐसा ही कहाकहाँ पहुँचे हो, सीट मिल गई, खाना खा लिया...मेरी कम बात करने की आदत है हां सब ठीक है कहकर, फोन रख दिया।लेकिन.....शायद वह कुछ कहना चाहती थीं।सुबह ट्रेन दिल...
 पोस्ट लेवल : एक सुबह कविता
Ravindra Pandey
0
खूबनुमा सुबह के ओ सौदागर, बड़ा खूब ढाया है तूने कहर,लेकर उनींदे हमारी सभी,देते हो क्यों अलसाया सहर...कैसी है ख्वाबों की ये अनकही,बातें दिलों की दिल मे रही,सुहाना लगे है ख्वाबों का सफर,बड़ा खूब ढाया है तूने कहर...धड़कन क्यों बेताब हैं आजकल,सदियों सा लागे हमें एक प...