श्री सलिल जी एक प्रकाश पुंजहृदय हुआ गद् गद् अनुज सुन कर शुभ सम्वाद।शीर्ष हुआ उन्नत अधिक प्रभु की कृपा प्रसाद।हिन्दी के उत्थान में अमर रहेगा नाम।भाषा के विज्ञान में की सेवा निष्काम।।डॉ. सतीश सक्सेना 'शून्य'ग्वालियर *संजीव वर्मा "सलिल"* एक ऐसा नाम जि...
पोस्ट लेवल : "सेना"

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पानी सी होती हैं स्त्रियाँहर खाली स्थान बड़ी सरलता सेअपने वजूद से भर देती हैंबगैर किसी आडंबर केबगैर किसी अतिरंजना के..आश्चर्य येकि जिस रंग का अभाव हो उसी रंग में रंग जाती हैं ..जाड़े में धूप ..उमस में चांदनी ..आँसुओं में बादल..उदासी में धनक..छोटी बहन को एक भाई क...

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*शब्द ब्रम्ह के पुजारी गुरुवार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'*छाया सक्सेना श्रुति-स्मृति की सनातन परंपरा के देश भारत में शब्द को ब्रम्ह और शब्द साधना को ब्रह्मानंद माना गया है। पाश्चात्य जीवन मूल्यों और अंग्रेजी भाषा के प्रति अंधमोह के काल में, अभियंता होते हुए भी...

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संस्मरण: अपने आपमें छंद काव्य सलिल जी - आभा सक्सेना, देहरादून *संजीव वर्मा सलिल एक ऐसा नाम जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है |उनकी प्रशंसा करना मतलब सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा |उनसे मेरा परिचय मुख पोथी पर सन 2014 - 2015 में हुआ |उसके बाद त...

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देहरादून के युवा लेखक इंजीनियर रोहन सक्सेना और उनकी छोटी हिंदी कहानी, क़िस्सा 'शहतूत' का शब्दांकन के स्तंभ नई क़लम में स्वागत है. दुआ है कि रोहन की क़िस्सागोई ख़ूब फलेफूले. शहतूतरोहन सक्सेना की हिंदी कहानी बात बहुत आसान है। आपकी और मेरी नींद म...

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वज़्न 2122. 2122. 212मतलारस्मे उल्फत है गवारा क्यों नहींदर्द है दिल का सहारा क्यों नहीं ।।लाड़ से उसने निहारा क्यों नहींऔर नज़रों का इशारा क्यों नहीं ।।इश्क मे ऐसा अजब दस्तूर हैवो किसी का है हमारा क्यों नहीं ।।प्यार से उसने लगाया जब...

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तनिक ठहरोरुको तोदेखो साड़ी में पायल उलझ गईकि दायित्व में अलंकार उलझ गएसंस्कारों में व्यथा उलझ गई..कल भी ऐसा ही हुआ थाकल भी पुकारा था तुम्हेंकल भी तुम न रुके..सुनो ये वही पायल हैंजो मैंने भांवरों में पहनी थीये साक्षी हैं तुम्हारे उस वचन कीकि तुम मुझे अनुगामिनी नहींसख...

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वज़्न 2122. 2122. 212मतलारस्मे उल्फत है गवारा क्यों नहींदर्द है दिल का सहारा क्यों नहीं ।।लाड़ से उसने निहारा क्यों नहींऔर नज़रों का इशारा क्यों नहीं ।।इश्क मे ऐसा अजब दस्तूर हैवो किसी का है हमारा क्यों नहीं ।।प्यार से उसने लगाया जब...

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कहते हैं एक दिन उन फूलों नेअपनी पन्हइयों में भर कर पेशाबपिलाई अपने बलात्कारियों कोऔर पेड़ों से बाँध करउनके प्रजनन अंगों के चिथड़े उड़ा दिएइस कविता में गुस्सा है लेकिन वह एक जायज़ गुस्सा है .. स्त्रियों को किस तरह अपमानित किया जा रहा है आप सब जानते हैं . नरेश&n...

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ज्योति प्रसाद अग्रवाल ज्योति प्रसाद अग्रवाल की संपूर्ण रचनाएं असम की सरकारी प्रकाशन संस्था ने चार खंडों में प्रकाशित की थीं। उनमें 10 नाटक और लगभग अतनी ही कहानियां, एक उ पन्यास, 20 से ऊपर निबंध, तथा 359 गीतों का संकल्न है, जिनमें प्रायः सभी असमिया भाषा में लिखे गये...