जब हम सब खाना खा लेते हैं, तब सोचने लगता हूँ कि वह जल्दी से बर्तन माँज लें और हम दोनों हर रात कहीं दूर निकल आयें। हम दोनों की बातें पूरे दिन इकट्ठा होती गईं बातों के बीच घिरकर, झगड़ों के बगल से गुज़रकर सपनों के उन चाँद सितारों में कहीं गुम हो जातीं। हर रात ऐसा ही होन...
पोस्ट लेवल : "हमारी कहानी"

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पता नहीं यह कैसी अलसाई-सी सुबह होती? सब तुम्हारे आने की आहट में न जाने कब से टकटकी लगाए ऊँघते उनींदे करवट लिए वहीं बैठे रहते। तुम आते, तो पता नहीं आज कैसा होता। शायद इस अधूरी दुनिया का अधूरापन कुछ कम हो जाता। हम भी कुछ पूरे होकर थोड़े और भर जाते। तुम थोड़ी देर करते,...

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वह खाली कमरे का एहसास अपने अंदर भरकर पीछे कई मिनट से अपनी डायरी में छिपाये उस ख़त के बार में सोचता रहा। वह कुछ नहीं कर पाया। ऐसा सोच कर फ़िर कुर्सी में धँस गया। छतपंखे की फाँकें उसके अंदर निकाल आयीं। वह रोने को हुआ, पर रो न सका। इधर कुछ नींद में जाने से पहले के ख़यालो...

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वह खाली कमरे का एहसास अपने अंदर भरकर पीछे कई मिनट से अपनी डायरी में छिपाये उस ख़त के बार में सोचता रहा। वह कुछ नहीं कर पाया। ऐसा सोच कर फ़िर कुर्सी में धँस गया। छतपंखे की फाँकें उसके अंदर निकाल आयीं। वह रोने को हुआ, पर रो न सका। इधर कुछ नींद में जाने से पहले के ख़यालो...